किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



गुरुवार, अगस्त 27, 2009

मैं तो हर बार कहूँगा, ये आजादी मेली है

अपने को साज बताते हुवे शर्म आती है,
खुद को आवाज बताते हुवे शर्म आती है
जिस मुल्‍क में इंसान भूखा हो मेरे दोस्‍त
उस मुल्‍क को आवाज बताते हुवे शर्म आती है

जब तक भूखा सोये बचपन, जवानी ढूँढे रोजी को
लाश उढाने को न कपड़ा, बेबस फैलाये झोली को
पुलिस द्वारा स्वयं फ़रियादी, लूटे खसोटे जाते हों
निर्दोषी जेलों में तड़फे, हत्‍यारे फांसी से बच जाते हों
इंसाफ जहां का हो झूठा, और भ्रष्ट प्रशासन हो सारा
झूठी शिक्षा की मार ने, हर युवक को बेमौत मारा
जहां भूकी माताओं ने निज बेटों की जाने लेली है
मैं तो हर बार कहूँगा, ये आजादी मेली है

छात्र बसों को जला रहे, पुलिस निहारे जाती है
मैं पूछ रहा हूं क्‍या ये आजादी कहाती है
शिक्षा मन्‍दिर बच ना पाये राजनीति की चाल से
हर आँगन प्रांगण पींडीत हे घेरा बन्दी हड़ताल से
आजादी का वीर शिवा, सत्‍ता दुश्‍मन को सौंप रहा
भामा शाह धन की ही खातिर राणा के चाकू धोप रहा
इस मुल्‍क की पद्मिनी ही खिलजी से जाकर बोल रही
भरी सभा में आज स्‍वयं ही द्रोपती आँचल खोल रही
रोजाना फांसी पर लटक रही यह दुल्‍हन नई नवेली है
मैं तो हर बार कहूँगा, ये आजादी मेली है

जहां का ईश्‍वर अल्लाह ही आपस में लड़ जायेगा
क्‍या वों अभागा मुल्‍क देश फिर भी आजाद कहायेगा
गांधी का सपना टूट गया नेहरू की आशा बिखर गई
शासन तंत्र नहीं बदला सत्ता पर सत्ता बदल गई
समाजवाद का देकर नारा वोट मांग लजाते हें
स्‍वयं पहले और समाज बाद का, सिद्धांत यहां चलाते है
जनता के चूसे पैसे करली खड़ी हवेली है
मैं तो हर बार कहूँगा, ये आजादी मेली है

1 टिप्पणी:

  1. बहुत बढिया रचना है
    बधाई स्वीकारें।
    लेकिन यह कैसी सैटिंग की हुई है
    लिखना मुश्किल हो गया है।
    उर्दू की तरह लिखना
    पड़ रहा है। ...

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