किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर" की कविताओं के ब्लोग में आपका स्वागत है।

किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



गुरुवार, अप्रैल 29, 2010

ढूंढाड़ी कवि बुद्धिप्रकाश पारीक नहीं रहे

हिंदी और राजस्थानी भाषा के जानेमाने कवि बुद्धि प्रकाश पारीक का जयपुर में 22 अप्रेल गुरुवार को  निधन हो गया। वे 87 वर्ष के थे। दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार कर किया गया, जहां बड़ी संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे।
पारीक ने ढूंढाणी भाषा में विशेष रूप से व्यंग्यात्मक काव्य के द्वारा अपनी एक खास पहचान बनाई। वे राजस्थानी भाषा के अतिरिक्त हिंदी, उर्दू व ब्रज भाषा में भी पूर्ण अधिकार पूर्व काव्य सृजन करते थे। चूंटक्यां, चबड़का, तिरसा, कलदार, सिणगार, मैं गयो चांद पर एक बार, नाक और इंदर सूं इंटरव्यू इनकी खास रचनाएं थीं, जिनकी बदौलत उन्होंने कई दशकों तक श्रोताओं के दिलों पर राज किया। उनको कवि रत्न, साहित्यश्री, लंबोदर, मिर्जा गालिब व मारवाड़ी सम्मेलन का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया गया। उनके निधन पर बिहारी शरण पारीक, किशोर जी किशोर, शोभा चंदर पारीक, चंद्रप्रकाश चंदर, गोविंद मिश्र, नंदलाल सचदेव, चंपालाल चौरड़िया, फारुख इंजीनियर और रफीक हाशमी सहित बड़ी संख्या में साहित्यकारों और साहित्य अनुरागियों ने शोक व्यक्त किया है।

समाचार

बुधवार, अप्रैल 14, 2010

में तुझे देख लूँगा

एक गांव के  ऑफिस जाते पति को
आधुनिक पत्नी ने मारी
किस फ्लाईगं
कहा
सी यू इन ईवनिंग
सुनते ही
पति का चढ़ गया पारा
उसने भी जवाब दे मारा
धमकाती किसे हो
एक घुमा कर दूंगा
और तू मुझे क्या देखेगी
में तुझे देख लूँगा
किशोर पारीक " किशोर" 

तंग आया फरमाईशों से

भरपाया तेरी ख्वाईशों  से
तंग आया फरमाईशों से
इसलिए जा रहा हूँ
इस नरक से तरने
जा रहा हूँ मरने
पत्नी  रुंआसी होकर बोली
हे मेरे हमजोली
नेचर  है तुम्हारी जोली
बेशक आप जातें है जाईये
जाने से पहले एक सफेद
साड़ी दिलवाते जाईये
ये भावी विधवा
अंतिम समय कहाँ से लायेगी
आपकी अन्त्येष्टि में
यह साड़ी काम आएगी
किशोर पारीक "किशोर"

साइबर काऊ


ई- डेयरी खोल  कर
एक छोरा ले आया
साइबर काऊ
दूध लेने आया
गांव का ताऊ
छोरे ने हँसते हुए बोला
 ताऊ पेन ड्राइव लाओ
जितने जीबी दूध
चाहो ले जाओ
ताऊ भी था थोडा
कम्पुटर पढ़ा
उसने उसी अंदाज़ में
उत्तर जड़ा
फालतू मात बोल
कम्प्यूटर के वायरस
देने से पहले गायरस
ईं की जीभ दिखा
म्हें पहचाणु थारी
सगली पीढ़ी
कठे तने लगा रखी हो
पानी वाली सीडी
भाया तू यदी
कम्प्यूटर में डेस्कटौप है
तो यो ताऊ भी पूरो लेपटोप  है!
किशोर पारीक " किशोर"   

मंगलवार, अप्रैल 13, 2010

आज की कविता

आज की कविता
कोई रेड, कोई मेड, कविता से करे छेड़
कोई भोंपू, कोई सेड नाम धर आये है,
कविता के राष्ट्रीय मंच,छडे दोड़ दोड़
जोड़ जोड़ चुटीले से, चुटकुले सुनाये है
थाल अश्लीलता का, मॉल ड़ाल फुड़ता का
स्वाद भरे शब्दों के, भूरते बनाये है
जोकर बने है पर, जोक में भी दम   नहीं
सुकवि बेचारे शीश झुका सकुचाये है

जब से ये ठेकेदार, मंच को सजाने लगे
साहित्य पे स्यामत के मेघ मंडराए है
तालियाँ बटोरते है, गलियां सुनते खूब
दो दो अर्थ वाले संवाद भी जुटाए है
हरे हरे राम राम करे सभी साधू कवि
इनने तो हरे हरे नोट भी कमाए है
कविता में केंचिया, कटार सी चलाते  देख
केशव कबीर ने तो मुंह लटकाए है

कीजिये प्रहार तो, समाज की विसंगति पे
आपका प्रहार सत्य, रोतों को हंसायेगा
गुदगुदी भी करेगा,आनंद देगा व्याज रूप
दम चाहे नहीं मिले, दाद तो कमाएगा
श्रोता सदहोता निर्दोष और ईमानदार
जैसा भी परोस दोगे, वही तो वह खायेगा
कविभंड नहीं है, प्रचंड होता काव्य ओज
किया जो पाखंड कविमंडली लजाएगा

किशोर पारीक "किशोर"  

हज़ार हज़ार के नोटों की माला


हे माया
हज़ार हज़ार के नोटों की माला
देख चकराया 
तेरे जो रंगरूट है
उन्हें लूटने की छूट है
अमीर का अट्टहास  है
गरीब का उपहास है
भावनाओं  की ठगाई है
कमर तोड़  महंगाई है
असत्य के दाव   है
सत्य पे घाव है
 नोट पे गाँधी  है
पाप की आंधी है
माला नही नाग है
लोकतंत्र पे दाग है!
में तो तुझे तब मानता
तेरी असलियत पहचानता
जैसे फूलों की माला
अपने गले से उतारती थी
दलित को पहना कर  पुचकारती थी
क्यों नहीं किया अबके उनसे प्यार
क्यों नहीं डाला उनके गले में यह हार
हे माया
हज़ार हज़ार के नोटों की माला
देख चकराया
किशोर पारीक " किशोर"

मुक्तक : तिरंगा


मुक्तक : तिरंगा
भारत की आत्मा का है, रूप यह तिरंगा
हमको सदा से लगता, अनूप यह तिरंगा
जब तक गगन में होंगे, सूरज चंदा तारे
तब तक रहेगा कायम, स्वरुप यह तिरंगा

लारा रहा है जग में, चितचोर यह तिरंगा
सैनिक के बाजुओं में, बन जोर यह तिरंगा
कश्मीर पे गड़ाई, दुश्मन ने अपनी नज़रें
उसकी धरा पे होगा, चहुँ और यह तिरंगा

किशोर पारीक " किशोर"

सोमवार, अप्रैल 12, 2010

मुक्तक : सरताज है हिमालय, कश्मीर नयनतारा

सरताज है हिमालय, कश्मीर नयनतारा
चरणों को धोये सागर, नहलाती गंगधारा
अवतार ओ पयम्बर, खेले धारा पे जिसके
ऐसा अतुल्य भारत, प्राणों से भी प्यारा !

सीरत रही है जिसकी, सद्भाव भाई चारा
बलिदान होके  जिसको ,  वीरों  ने है संवारा
उस देश को नमन है, जो मातृ भू हमारा
कुरबान उसपे होवें , गर वो करे इशारा !

किशोर पारीक'किशोरे"

गीत: मांगे फूल मिलें है खार,इनसे कैसे हो सृंगार!

मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
रक्त सना है गोपी चन्दन, थमी धड़कने चुप स्पंदन
कैसी संध्या, कैसा वंदन, आह, कराह, रुदन है क्रंदन
लुप्त हुए   है स्वर वंशी के, गूंजा भीषण हाहाकार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
दहके नगर बाग, वन-उपवन,आशंकित आकुल है जन-जन
गोकुल व्याकुल शंकित मधुबन,कहाँ छुपे तुम कंस निकंदन
माताएं बहिने विस्मित हैं, छुटी शिशुओं की पयधार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
लड़ती टोपी पगड़ी चोटी, बची इन्ही में धर्म कसोटी
मुश्किल चूल्हे की दो रोटी, अबलाओं पर नज़रे खोटी
सपनो के होते है सोदे,  अरमानो के है व्यापार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
बदला नहीं कोई मंज़र, केवल बदले साठ  कलेंडर
संसंद में गाँधी के बन्दर, बेशर्मी से हुए  दिगंबर
थमा सूर तुलसी का सिरजन, अब बारूदी कारोबार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!

किशोर पारीक "किशोर"

गुरुवार, अप्रैल 08, 2010

ग़ज़ल : बज़्म लतीफों से गूंजे तो, अदबी बात करें कैसे

हाकिम हो बेदर्द जहाँ पर,
फिर फरियाद करे कैसे
खोटे  सिक्के चले जहाँ पर,
उनको करें खरे कैसे
जहाँ सहर से शब होने तक,
भागमभाग लगी रहती
दो पल का भी चैन नहीं है,
रूक कर बात करे कैसे
नज़रें तो खामोश है, लेकिन
दिल में ज्वार  उठा करते
लब पर ताले जड़े  हुए हैं,
बोलो शब्द झरें कैसे
महफिल-महफिल लिए सुखनवर,
घूमे अपने गीत-ग़ज़ल
बज़्म लतीफों से गूंजे तो,
अदबी बात करें कैसे
पंख कुतर करके "किशोर" के,


बोले अम्बर नापो तुम
खाली जज्बातों से कोइ,
अब परवाज़ करे कैसे

किशोर पारीक "किशोर"

लुगाई की तलाश

एक हफ्ते तो ढूंढता डोला
फिर जाकर पुलिस  को बोला   
अपनी गुहार कुछ यों लगाई
दरोगाजी मदद करो 
भाग गयी मेरी  लुगाई
दरोगा ने आँखें चलाते
जारी कर दिया फरमान 
नहीं रखता होगा तू
उसका ध्यान
पीड़ित बार-बार आहे भरता था
बोला दरोगाजी
में तो उसे आपनी
सगी बहन से भी ज्यादा
प्यार करता था !

किशोर पारीक " किशोर"
 

साजन एफ एम रेडिओ

निश-दिन तान सुनाये
मुझको  होले होले
अच्छी अच्छी बातें बोलें
जब चाहूं मुहं खोले
सुन सखी मुझको
ऐसे साजन की है
खोज
बोली सहेली, छोड़  तलाश पति की
जा एफ एम रेडिओ खरीद
उसे सुन रोज
मना मोज

किशोर पारीक"किशोर"

मुक्तक : अंग्रेजों के इंडिया को, भारत में कब बदलोगे

कलकत्ता, मद्रास, बंबई, बदले कितने नाम
शुद्र स्वार्थ के खातिर, हम  सब करते ऐसे काम
अंग्रेजों के इंडिया को, भारत में कब बदलोगे
एक देश के दुनियां में, न देखे हैं दो नाम
किशोर पारीक"किशोर"

बुधवार, अप्रैल 07, 2010

ग़ज़ल : आज के हालत पर

दुआ देते हाथ ही, बायस बने आघात का
कुछ भरोसा ही नहीं है, आज के हालत का
बगवां गुलशन में रखे,  जब कभी अपने कदम
ध्यान रखना फूल  के, तितली के भी जजबात का
पिट  यहाँ सकते मुसाहिब, प्यादियाँ फर्जी बने
राजनीती खेल है अब, सिर्फ किस्तो मात का
ढूँढते हो शरबती, आँखों में हरदम मस्तियाँ
मोल  वे क्या कर सकेंगे, अश्क   के जजबात का
खुशनुमा दोपहर गुजरी, शाम भी हो खुशनुमा
होश कारलो गफिलों, आगे अँधेरी रात का
किशोर पारीक" किशोर"

दुल्हे बने कंडेक्टर

फेरे में दुल्हन को
देख दुल्हे बने
कंडेक्टर 
से नहीं गया रहा
उसने अपनी डयूटी
के अंदाज़ में ही कहा
तू तो मन्ने   
घणी ही भाएगी
पर थोड़ी और
सरकजा

एक सवारी
और आयेगी
किशोर पारीक " किशोर"

 

पॉपुलेशन नियंत्रण

इंडिया में
प्रति दस सेकंड
में एक औरत
एक छोरा
जनति है !
क्या करें आबादी
रोकने का तरीका 
बतावें 
छात्र ने उत्तर दिया 
सर ! सबसे  पहले ऐसी
लुगाई को ढूंढ़कर 
उसे सबक सिखावें !
किशोर पारीक " किशोर"

व्यंग: इच्छाधारी बाबा

नागनाथ ने सांपनाथ 
से कहा 
हम सिर्फ फिल्मों और 
कहानियों में रह गए 
अरे बाबाजी
हमारे नाम पर 
मजे ले गए 
किशोर पारीक " किशोर" 

हँसते हँसते मरो

बिजली के करंट से
मरा
मेरे गांव का एक
मसखरा
खम्बे से उतार कर 
उसकी लाश, जब
अर्थी पर
सजाई  गयी
उसकी मुख मुद्रा
हंसती हुई
पाई गयी!
यमराज ने
ऐंठ कर प्रश्न दागे
अबे ओ अभागे
ऐसा क्या ?
मरते हुए भी
हंसी उलीच रहा है
मसखरे  ने
मुस्करा कर कहा
यमराज जी मैंने सोचा
फोटोग्राफर
मेरी फोटो खिंच रहा है !
किशोर पारीक " किशोर"

पापा बनाम डेडी

मुझको तू पापा कहती थी
अब क्यों कहती "डेड"
इस परिवर्तन पर मेरा लाडो
घूम रहा है , हेड
घर अपना है,
बाग सरीखा
डेडी तुम हो माली
तुमको गर बोलूं पापा
तो पूछती होंटों  
की लाली ! किशोर पारीक " किशोर"

नेता सांप

नेता सांप
सोने पहुंचे वर्माजी,
बिस्तर में था इक नाग
बोले वर्मा डस नेता को,
और यहाँ से भाग ! 
बोला सांप छोड़िये बातें 
नेता अपना भाई है 
मेरे अन्दर की विष
की थेली
उससे ही भरवाई है !
किशोर पारीक "किशोर"

कबूतर के माध्यम से मिसकाल

कबूतर के माध्यम से मिसकाल

एक प्रेमी
जोड़ा
कबूतर के माध्यम से
संदेशो का सिलसिला
जोड़ा
एक  दिन प्रेमिका के
चाँद से चेहरे पर
उदासी की अमावस्या
छाई   थी
कबूतर तो आया था
एस एम् एस
नहीं लाया था
मिलने पर पूछा
कारण
प्रेमी ने कहा हे
मेरी चंपारण
ये ही तो मेरा कमाल  था
कपोत  के साथ
ये मेरा मिसकाल था !
किशोर पारीक " किशोर"

मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

सरकारी अस्पताल

सरकारी अस्पताल

काव्य की कक्षा में
गुरूजी ने प्रश्न दागा
बताईये !
ज्यों-ज्यों दवा की 
रोग बढता ही गया 
समझाइये 
एक होशियार
चेले के उत्तर पर
पूरी कक्षा ने
मुस्कराहट मारी
बोला सर !
लगता है
जहाँ
इलाज चल रहा है,
वह अस्पताल है
सरकारी !
किशोर पारीक" किशोर"

लोन लेकर करो विवाह

लोन लेकर  करो विवाह

बैंक से लिया लोन
खरीदी
एक कार
नहीं चुका सका तो,
वापस ले गए
यार
काश   
ऐसा होता  पता
तो बिलकुल नहीं 
डरता 
शादी भी लोन लेकर ही 
करता 
 किशोर पारीक " किशोर"
  

रविवार, अप्रैल 04, 2010

स्वाभिमान सो गया है, तेज कहीं खो गया है

स्वाभिमान  सो  गया है, तेज कहीं खो गया है
सिंह को सियार अब रोज धमकाएंगे 
आँख मूँद भीष्म बने, देश को चलने वाले
माँ भारती की लाज को, ये कैसे बचा पाएंगे
दुश्मनों   की आँख रही, देश के ललाट पर
प्रेम के तराने फिर भी गाते चले जायेंगें
संसद पे हमलों से, जूझेंगें जवान जब
कुर्सियों  के नीचे जाकर, ये छुप जायेंगें

किशोर पारीक" किशोर"

इश्क का रंग

इश्क का  रंग
कितने आये गए
इश्क करांग
पक्का है !
था कभी अंगूर
अब मुनक्का   है
अज्ञात 
संकलन

शनिवार, अप्रैल 03, 2010

बात पते की, यही हुजूर

बात पते की,  यही हुजूर 
खुराफात से, रहना दूर
दिया खुदा ने उसे कबूल
उसको था, ये ही मंजूर
नहीं निगाह मैं, उसके फर्क
राजा हो, या हो मजदूर
जिन्हें हुस्न पर, होता नाज़
वो अक्सर होते मगरूर
खोएगा जो वक्त फिजूल
सपने होंगे, चकनाचूर
चलते ही रहना, दिन-रात
मंजिल अपनी, कोसों दूर
सबर सुकूं, की रोटी चार
बरसाती चेहरे पर नूर
बोई फसल, वही तू काट
जीवन का ये ही दस्तूर
दुनिया फानी, समझ "किशोर"
सब कुछ होना है काफूर

किशोर पारीक " किशोर" 

में धड़कन के गीत लिखूंगा





 में धड़कन के गीत लिखूंगा






वंदन मिले ना,  चाहे मुझको, चन्दन मिले ना चाहे मुझको
नई सुबह के पन्नो पर, में  अपने मन  के मीत लिखूंगा
                                    में धड़कन के गीत लिखूंगा
बादल चाहे कितना गरजे, सूरज से भी अग्नि बरसे 
अपने माँ के अनुपम गुंजन, से में नवनीत लिखूंगा
                                में धड़कन के गीत लिखूंगा
थक कर चाहे सो जाऊंगा, जग कर फिर लिखने आऊँगा 
करदे सराबोर सब जग को, ममतामय में शीत लिखूंगा 
                                 में धड़कन के गीत लिखूंगा
मोसम तो आये जायेंगे, मुझको कहाँ हिला पाएंगे
अग्नि का जो ताप भुजादे , कागज़ पर में शीत लिखूंगा
                              में धड़कन के गीत लिखूंगा
इस बगिया की आंगन क्यारी, मुझको प्यारी हर फुलवारी
हर रिश्ते में जान फुकदे, ऐसी  सुन्दर रीत लिखूंगा   
                                 में धड़कन के गीत लिखूंगा
ओ चिराग गुल करने वालों, चाहे जितना जोर लगालो
जगतीतल को रोशन करदे, ऐसे उज्वल दीप लिखूंगा
                               में धड़कन के गीत लिखूंगा
सागर जितना में गहरा हूँ, अम्बर जैसा में ठहरा हूँ
वर्तमान को सुरभित करदे, अनुपम वही अतीत लिखूंगा
                            में धड़कन के गीत लिखूंगा
चाहे शब्द कहीं खो जाये, स्वर मेरे चाहे खो जाये
फिघलती पावक पर बैठा, में फिर से नवनीत लिखूंगा
                           में धड़कन के गीत लिखूंगा
वंदन मिले ना, चाहे मुझको, चन्दन मिले ना चाहे मुझको

नई सुबह के पन्नो पर, में अपने मन के मीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
किशोर पारीक " किशोर"

कल से पहले, आज की सोच

कल से पहले, आज की सोच
कल से पहले, आज की सोच
भूखा  है, अनाज  की सोच
उनके पांवों में ना चप्पल 
खुद के मत तू, ताज की सोच 
भूतकाल को,  दोष ना दे 
मूल बचा, मत ब्याज की सोच
जिस अम्मा ने बख्शी सांसें
चुप क्यूँ है, आवाज की सोच
काबा कशी में, क्या रक्खा ?
मन मंदिर के साज़, की सोच 
हरदम तुझको, देखे यारब 
उसके तू अंदाज़ की सोच 
किशोर पारीक" किशोर"  

जाना पड़े तुझे थाने तो, इज्जत बाहर धरता जा

सुबह शाम तू रोज़ चिलम ले, बड़े साहब की भरता जा
कैसा भी हो संकट प्यारे, उससे पर उतरता जा
बरसों से जो अटके- लटके, झटके से पूरे होंगे
हर पड़ाव पर अहलकार के, हाथ गर्म तू करता जा
आपने झगडे खुद निपताले, कोर्ट कचहरी मत जाना
जाना पड़े तुझे थाने तो, इज्जत बाहर धरता जा 
दल दल मैं तू फसाना चाहे, सुन उपचार बताता हूँ 
राजनीती के तहखानों में क़दमों कदम उतरता जा
गीत ग़ज़ल, छंदों की बातें, करना अब तू छोड़ सखे
चुरा लतीफे पढ़ मंचों पर, आपने आप निखरता जा
धोले बहती गंगा में तू, अपने   दोनों हाथ "किशोर"
पकड़ी है जो मछली तुने, शनै शनै कुतरता जा
किशोर पारीक" किशोर"

मेरी माँ

मेरी माँ

ब्रह्मा यद्यपि सृष्टि रचयिता, उससे, बढ़ कर मेरी माँ 
सृष्टा के आसन पर बैठी, मुझको घढ़कर मेरी माँ 
बेटे की माँ बन जाने का, गौरव तुमने पाया था 
हुई घोषणा थाल बजाते, छत पर छढ़कर  मेरी माँ
मैं तो तिर्यक योनी में, घुटनों के बल चलता था
गिरते को हर बार उठती, हाथ पकरकर मेरी माँ
अमृत सा पय पण कराती, आँचल की रख ओट मुझे
बड़ा हुआ तो खूब खिलाती, हरदम लड़कर मेरी माँ
किये उपद्रव तोडा फोड़ी,उपालम्ब  भी खूब सहे
किन्तु नहीं अभिशापित करती, कभी बिगड़कर मेरी माँ
लगती तुम ममता   की सरिता,  मंथर गति से जो बहती
कभी बनी पाषाण  शिला  सम, आगे अड़कर मेरी माँ
तुम मेरी पैगेम्बर जननी,  तुम ही पीर ओलिया हो
शत शत शत प्रणाम अर्पित है, चरणों पड़ कर मेरी माँ
किशोर पारीक " किशोर"  ग़ज़ल

नैन लड़ाते खड़े चिकित्सक, सिस्टर से तनहाई में

टूटी दांई टांग, लगादी रॉड लगादी भले ने  बाँई में
किसको फुरसत सभी लगे है, अंधी मुफ्त कमाई में 
मंदी का भी दौर  न होगा, इन दोनों के धन्दो में
नज़र न आत मुझको अंतर, सर्जन और कसाई में
पेट दर्द था कलसे उसका, दिखलाने भीखू आया 
पता लगा गुर्दा दे आया, आते वक्त विदाई में 
चीर पेट छोड़ी है अन्दर, केंची, पट्टी सर्जन ने 
दोष  ढूंढ़ते आप भला क्यों, मिस्टर मुन्ना भाई में 
रहें सिसकते दुर्घटना में, घायल उनको रोते है
नैन लड़ाते खड़े चिकित्सक, सिस्टर से तनहाई में 
बीमारी गहरी या हल्की, अस्पताल में मत जाना 
भले कूदना पड़े तुम्हे तो, कुए, बावड़ी, खाई में
समझा  जिनको जीवन रक्षक, भक्षक प्राणों के निकले
वो "किशोर" करते अय्यासी नकली लिखी दवाई में.
किशोर पारीक "किशोर:
  
    

शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

जन- जन के माँ की पीड़ा का, गायक मैं किशोर हूँ

मुक्तक

सोचता हूँ मैं लिखूं, कुछ चांदनी के रूप पर
मीत के संग प्रीत पर, योवन नहाती धूप पर
भूख नफरत देखकर  , आवेश आता है
इसीलिए कविता में, पहले देश आता है 
                  ====
ना कोलाहल  हूँ मैं यारों, सिसकी ना ही शोर हूँ
दर्द को सहलाने वाली,  अँगुलियों की पोर हूँ
शब्द लिखें हैं जितने मैंने , धड़कन की हर  स्वांस से
जन- जन के मन की  पीड़ा का, गायक मैं  किशोर हूँ  
किशोर पारीक"किशोर"

पोथियाँ

जीवित किताबों में है, विद्यापति जयदेव
पुस्तकों में अमर, रहीम रसखान है
देह निज धर्म से, ही शेष होती एक दिन
स्मृति अशेष कृति, लेख पहिचान के
कवि कालीदास, व्यास, सूरदास, नाभादास
अष्टछाप कवियों  का, पोथियों में गान है
पुस्कें ही असल में साज़ माता शारदा का
राधिका का राग, कृष्ण- बांसुरी की तान  है



 पोथियों में वेद की.जो वाणी भगवान की है
ऋषियों के रचे, उपनिशध पुराण है
उतरा था आन के जेहन में पेगेम्बर के
पाक है कलाम, वही नाम कुरआन है
विष्णुगुप्त  में है, साम, दाम,दंड, भेद  
नीति स्म्रुति के ग्रन्थ, अपने संविधान है
ग्रन्थ का प्रकाश है, अकाल ओमकार रूप
गुरुग्रंथ साहिब, महान है, महान है

किशोर पारीक"किशोर" 


सरस्वती वंदना


सरस्वती वंदना
वंदन तुम्हे शारदा मैया,     मुझको तुम ऐसा वर देना
भावों की अभिव्यक्ति, सहज हो, मुझको तुम ऐसा स्वर देना

स्वर जिनसे मिटती पीडाएं, स्वर जो घावों को सहलाये
स्वर जिनको सुन सब हर्षाये, वे स्वर वाणी में भर देना
                                     मुझको तुम ऐसा स्वर देना
शब्दों में होती है,भविता, शब्दों से पुजतें है, सविता
शब्दों से बनती है,कविता, शब्दों से जड़ता हर लेना
                                मुझको तुम ऐसा स्वर देना
अक्षर ब्रह्म गहन गंभीरा, अक्षर को ही भजति मीरां
ताना-बाना बुने कबीरा, क्षर मत देना अक्षर देना
                               मुझको तुम ऐसा स्वर देना

वंदन तुम्हे शारदा मैया, मुझको तुम ऐसा वर देना

भावों की अभिव्यक्ति, सहज हो, मुझको तुम ऐसा स्वर देना
किशोर पारीक"किशोर"

गाय की गुहार


गाय की गुहार
भटक रही गली-गली, पोलीथिन खाती-खाती 
   नदी नाले दूध के जो, पोथियों में बह गए   
 कट रही गाय आज, कमलों में झुण्ड-झुण्ड
गऊ प्रेम क्षेम सब,अंक मूँद सो गए
कैसे बने कोड अब, तीन सो दो दफा जैसा
नेता सरे संसद के, गूंगे बहरे हो गए
कृष्ण तू तो गोप था, गोपाल था, गोविन्द रहा
आज तेरे वंश के ही कंस जैसे हो गए
दूध, दही, घृत देय, जगत को पोसती है 
मानव संवारती है, रूप धरे मैया का 
गांव को ये अम्ब, स्वावलंब, उपहार देती 
बैल पतवार होता, खेत रुपी नैया का 
गोधन संपन्न कहा जाता, वही देश धन्य-धन्य
करें संम्मान आप, धेनु के चैरया का 
देवता तैतीस कोटि,रोम में रमे ही रहे
कैसा प्यार पाया मेरे, कुंवर कन्हैया का 
धोरी, लाल, घूमरी, सवत्स, कपिला के संग 
कैसा प्यार पाया, मेरे कन्हैया बलभैया का
वही भूमि वही गाय, प्राण भय डकराय
आर्तनाद करे जैसे हाय-हाय, दैया का
संविधान मांही आप, धारा एक जोड़ दीजे 
ख़ूनी जैसा हस्र होवे,  गाय के कटैया का 
छोड़ काम दोड़ पड़े , गाय की गुहार पर 
भैया प्राण बचे तभी, गोविन्द की गैया का 
किशोर पारीक" किशोर"
        

आज लेखनी खुल कर बोलो

आज लेखनी खुल कर बोलो

आज लेखनी खुल कर बोलो ,
जिन शोलों की तपन घटी है ,
उन्हें उकेरो, उन्हें टटोलो !
आज लेखनी खुल कर बोलो

ज्ञान, ध्यान वैराग्य त्याग के,
पथ पर  तुमने हमें चलाया
या बोरा श्रृंगार जलधि में ,
कभी कहा जग झूठी माया
प्रतिस्पर्ध के इस युग में ,
कुछ कहने से पहले तोलो
आज लेखनी खुल कर बोलो ,

श्रद्धा  नेतिकता सब हारी,
पावस में ज्यो ओझल सावन,
देश राम का कहलाता है ,
आतंकित करते है रावन
युवकों में तुम विप्लव भर दो
शब्दों के सब तरकस खोलो

भटकी हुई आज तरुनाई,
झूटी राहे   मंजिल  झूटी
भाई का भाई है  बेरी
हमसे धरती माता रूठी
विष  तुम पुन: सोंप शंकर को
पियूष अब घर घर में घोलो
आज लेखनी खुल कर बोलो


जड़ में  तुम चेतनता  लाकर
नस नसमे बिजली भर सकती
चन्द्रह्यास बन परम दुधारी
अरि  को तुम आकुल कर सकती
कला है जो सुमुख तुम्हारा
शोंणित में तुम उसे डुबोलो
आज लेखनी खुल कर बोलो

किशोर पारीक"किशोर"

गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

आरक्षण के कवित्त

सदियों  से जातियों में, छोटी सी  दरार थी जो
वही अब फैल गयी, खाई जैसी हो गयी
पिछड़ों में अगड़ों में, तगडों के झगड़ों में 
देश की छबीली छवि, भाई कैसी हो गयी 
मंडल कमंडल में,  वोट बैंक बन रहे 
नेताओं की चांदी है, कमाई कैसी हो गयी 
संसद में गूंगे बहरे, बापू तेरे बंदरों की 
खोपड़ी सदेह सब, मलाई में ही खो गयी 
गूदड़ी के लालों का, ज्ञान जब व्यर्थ होगा 
श्रेष्ठता और योग्यता, को रास्त्र ठुकराएगा 
ए पी जे कलम तेरा,  दो हज़ार बीस तक का
सपना अधूरा का अधूरा, रह जायेगा
समता के न्याय की, धज्जियाँ   गर यों ही उडी
प्रतिभा पलायन फिर, कैसे रूक पायेगा 
पढ़े लिखें  युवकों को, रजगार होगा नहीं 
  पेट भरने को, वो अपराधी हो जायेगा

,
दीजिये आरक्षण तो, प्राथमिक शिक्षा से दो 
खूब पढ़वाईये, और, काबिल  बनाईये 
फेंकिये आरक्षण के, झुनझुने बैसाखियों को 
योग्यता का मापदंड, सब पे लगाईये 
त्याग दीजे विष भारी, रेवड़ियाँ बाटना
आत्म विस्वास कुछ, इनमे जगाईये 
रंगे सियारों मत तोड़ो,  मेरेदेश को तुम 
भाईयों को भाईयों, से मत लडवाईये
किशोर पारीक "किशोर"     
  
   

मेरे शब्दों में गीतों के भावों में तुम

मेरे शब्दों में गीतों के भावों में तुम
मेरे शब्दों में गीतों के भावों में तुम
क्या संभालोगे मुझको अभावों  में तुम
अपने नयनो   में तुमको बसाये रखूँ
कैसे नायब लगते, अदाओं में तुम
      मेरे शब्दों में गीतों के भावों में तुम
लम्बी रातों को छत  पर, सितारों तले
बंद पलकों से, तुमको निहारा करूँ
मैं मगन हो मुदित, गुनगुनाता रहूँ
सारे कोतुक में, सारी विधाओं में तुम 
    मेरे शब्दों में गीतों के भावों में तुम
मैं किनारा इधर का,उधर के हो तुम
साथ रहते भी हैं, किन्तु मिलते नहीं
गीत मांझी के लगते, सुरीले मगर
मेरी चांहों वन तुम हो, सदाओं में तुम
     मेरे शब्दों में गीतों के भावों में तुम
मुझको महकाओ बन जाओ सौरभ सुमन
आओ शब् में सुनहरे से सपनो में तुम
दिल में बजता रहे, मस्त मुरली का स्वर
गुजों गलियों में गावों, फिजाओं में तुम
       मेरे शब्दों में गीतों के भावों में तुम
जब भी कागज़ पे चाहा, उकेरूँ तुम्हे
अश्क ढलके मेरे, रोशनाई बही
चाहना कामना, भावना, साधना
मेरी आहों निगाहों, दुआओं में तुम
  मेरे शब्दों में गीतों के भावों में तुम
किशोर पारीक "किशोर"

बिन फेरे हम तेरे

पशु हार्ट अटेक से नहीं मरते
क्‍यों कि बो शादी नहीं करते
क्‍या आदमी उससे भी गया गुजरा हैं
शादी तो साक्षात दासता का पिंजरा हैं
महाराष्‍ट्र में लिव इन रिलेशन ने,
संबंधों पर मोहर लगाई हैं
बल्लियों उछल रहें हैं लाखों कुँवारे
यह बात उन्हें बहुत पसंद आई हे1
आदमी कुंवारा पैदा हुवा था,
कुंवारा ही जिये, कुँवारा ही मरे
जहां कही स्वादिष्ट चारा देखे,
वहीं चरे
अब भविष्‍य में शादी की क्‍या गरज
क्‍यू बिगड़ावे अपनी विगत
अब अनेक बुराइयों का होगा
दी एंण्‍ड
क्‍यों कि ना वाइफ होगी,
ना हसबेण्‍ड
पति, पत्‍नी और वो का चक्‍कर भी
दूर होगा ना लड़की मजबूर होगी
ना लड़का मजबूर होगा
लाफटर लतीफ़ों में कैसे
पत्नी को कोसेगें
कवि गीतों में कैसे
हास्‍य परोसेगें
घर घर सियासत की तरह
गठ बंधन होंगे
सत्‍ता सुख की तर्ज पर
गृह सुख मिल बांट खायेंगे
क्लेश हुवा तो फिर
अलग अलग हो जायेगें
जब मूढ़ हुवा तो
बिन फेरे हम तेरे
नहीं तो तू तेरे मैं मेरे
सबसे ज्‍यादा चिंता तो हमें
एकता कपूर की सता रही हैं

वो पठठी तो ज्‍यादातर
सास बहू के सिरियल ही बना रही हैं
अब बन्‍द हो जायेगा
सालियों का जूते छिपाना
भूल जायेगें सलमान का वो गाना
दीदी तेरा देवर दीवाना
हाय राम कुडियों को डाले दाना
अब बेटी के बाप को
चौरासी लाख योनियों के
संचित पाप को
बेटे के बाप
अर्थात पीवने सांप
के चरणों में पग़डी रखने की
नौबत नहीं आयेगी
आँखें भी आंसू नहीं बरसायेंगीं
न ही बिटिया दहेज़ के लिये
जलाई जायेगीं
लिव इन रिलेशन हेतु
अब कुण्‍डली नहीं
सेलेरी स्लिप की बात होगी
सुहाग रात प्रत्‍येक रात होगी
पिछले प्रेम संबंधों का नहीं होगा फेरा
एक के मरते ही दूसरे की जिंदगी में
फिर आयेगा नया अँधेरा
नया फूल देखकर तितलियां
गुनगुनायेगी
सुन्‍दर घाट देखते ही मछलियां
आशियाना वहीं बसायेगी
मियां बीबी राज़ी तो क्‍या करेगा काजी
जैसे नारे होंगे बहुतेरे
या गाने होंगे बिन फेरे हम तेरे
सेक्‍स, रोमांस, मोज-मस्ति,
हम तो नये जमाने की बात करतें हैं
सांस्‍कृतिक पतन, चरित्र हनन,
ये आप किस जमाने की बात करतें हैं।
किशोर पारीक " किशोर"