किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर" की कविताओं के ब्लोग में आपका स्वागत है।

किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



मंगलवार, सितंबर 28, 2010

स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी के ८१ वें जन्म दिन पर

स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी के ८१ वें जन्म दिन पर


जियों हजारों साल लताजी,प्रभू की अनुपम रचना हो
सुनले गीत तुम्हारे मधुरम, जब दर्दों को हरना हो
बरसों में पैदा होती है,कोयल एक तुम्हारी सी
जिसका स्वर इतना मीठाहो, जों शहद का झरना हो

दो अक्षर का नाम नहीं है, सुर की पूरी दुनियां है
सृष्टी   की नायब कृति है, गंगा जैसी  दरिया है
 कान्हा की वंशी की धुन, मीरा के इकतारे सी
सात सुरों में आप लताजी, फैलती स्वर लहरिया है
किशोर पारीक "किशोर"

गुरुवार, सितंबर 23, 2010

मिला मान का पान बहुत है

हल्की सी  मुस्कान बहुत है,
मुझ पर यह एहसान बहुत है
सुनता रहा  अदीबों से मैं,
मिला मान का पान बहुत है
अधिक भार का क्या करना है
जीने को समान बहुत है
बैर पड़ोसी से रखने को
चिनो पाकिस्तान बहुत है
भरने तेरा पेट चिदम्बर
जन की सस्ती जान बहुत है
सड़ने को सरकार बचाती
गोदानो मैं धान बहुत है
कविताई कुछ की किशोर ने
जितनी चली दुकान बहुत है

किशोर पारीक  "किशोर"

आजाओ बरखा बाहर बन, मन मेरा सरसादो

बिना तुम्हारे जाने कितने, बीते सावन भादो
आजाओ बरखा बाहर बन, मन मेरा सरसादो

हटा आवरण प्रथम पृष्ट से पुस्तक पढ़ खो जाऊं
छंद मयी, मैं तुम्हे बांचकर, कवितामय हो जाऊं
कुटिल नयन-संकेतों से ही, जटिल अर्थ समझादो
आजाओ बरखा बहार बन, मन मेरा सरसादो

शीतलता को भेज धरा पर, रजनीचर मुस्काया
मंद ज्योत्सना की किरणों ने, विस्तारी निज माया
मेरे उर के सतत दाह  पर, दृष्टी - वृष्टी  बरसादो
आजाओ बरखा बहार बन, मन मेरा सरसादो

मिलन अनूठा हो धरती का, जैसे घन अम्बर से
अथवा मदिर कंज कलिका का, होता मस्त भ्रमर से
त्यों ही सघन श्याम कुंतल ये, मेरे मुख छिटका दो
आजाओ बरखा बहार बन, मन मेरा सरसादो

भोर दुपहर सिंदूरी संध्या रातों की तनहाई
सतत प्रतीक्षा में ही मेंने, आधी उम्र बिताई
मोन पड़े जीवन साजों पर, सरगम मधुर बजादो
आजाओ बरखा बहार बन, मन मेरा सरसादो

किशोर पारीक "किशोर"

मंगलवार, सितंबर 21, 2010

इस धरती पर जो भी आया, वो बिलकुल अंजाना था

इस धरती पर जो भी आया, वो बिलकुल अंजाना था
धरती पर ही सीखा उसने, ढाई आखर गाना था
ढूढ़ रहा हूँ अजनबियों में , कोइ हो मेरा  अपना
जिसको मैंने समझा अपना, वो सचमुच बेगाना था 



कल से लेकर कल तक सारा, पल पल बीता बातों में  
विश्वासों का घट था रीता, सावन की बरसातों में                                                                                     
इतराई राहे पगडंडी, हंसी ठिठोली कर कर के                                                                                        
प्यासी वधुए वापस लोटी, पनघट से जज्बातों में
 

सारा जग ही  घर  अपना  है, सबको    पाठ पढाया है                                                                             
विश्व गुरु बनकर  दुनिया को सच्चा ज्ञान कराया है                                                                                      उस भारत  में जांत-पांत की,आरक्षण, जनगणना हो                                                                                      हे राम हमारे भारत को ये,  कैसा दिन दिखलाया है 

किशोर पारीक "किशोर"

 

सोमवार, सितंबर 20, 2010

अवधपुरी फिर से हुई, दौजख वाला द्वार,

अवधपुरी फिर से हुई, दौजख वाला द्वार,
चाहे किसकी जीत हो, चाहे किसकी हार

निर्णय चाहे जो रहे,  हारेगा यह देश
राजनीती के मोलवी, पंडित वाला वेश

शाला खोलो एक यहाँ,  मत दो अपनी  जान
मंदिर-मस्जिद से बड़ी,किलकारी मुस्कान

बुधवार, सितंबर 15, 2010

गंगां कोमानवेल्थ की, धोये सबने हाथ

दो मोसम है और भी, सूखा बाढ़ अपात
केवल ऋतुएँ हैं नहीं, सर्द , गर्म, बरसात
ये जब भी आते , अफसर हैं हर्षाते

संसद तो इनके लिए,     केवल एक दूकान
वन्दे मातरम की जगह, धन दे मातरम गान
जनता की दुश्वारी, चाहिए वेंतन भारी

गंगां कोमानवेल्थ की, धोये  सबने हाथ
बचों खुचों को दे रही, यमुनाजी सौगात
भर गए इनके गल्ले, हो गयी बल्ले बल्ले

स्टेडियम बन रहे, अरबों में तैयार
आफ्टर कोमानवेल्थ के , क्या होगा भरतार
लगेंगे फिर नहीं मेले, गधों के बने तबेले

किशोर पारीक "किशोर"