किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



मंगलवार, अक्तूबर 13, 2009

गंगा को अविरल बहने दो, जमना को अविरल बहने दो


गंगा को गंगा को अविरल बहने दो, जमना को अविरल बहने दो
मत छेडो इसकी धारा को, उज्ज्वलता रहने दो
गंगा को अविरल बहने दो, जमना को अविरल बहने दो
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जन्नत से जब उतरी गंगा माँ पावनता की थी मूरत
कल- कल करती इसकी लंहरे, सचमुच में थी शीतल अमृत
गंगाधर शिव ने जटा खोल, तब इसका वेग संभाला था
इतराती, इठलाती गंगा ने, स्वर्ग यहीं रच डाला था
सब लिखा शाश्वत ग्रंथो में, दुनिया जो कहती कहने दो
गंगा को अविरल बहने दो, जमना को अविरल बहने दो
ये पाप नाशनी है गंगा, ये रोग नाशनी है गंगा
ये मोक्ष दायिनी है गंगा, ये पुण्य दायिनी है गंगा
घर घर में पुजता गंगा जल, ये स्नेह दायिनी है गंगा
गंगा-जमनी तहजीबों , संवाहन करती है गंगा
अंधा, लालच, स्वारथ छोड़ो, कुछ निर्मलता के गहने दो
गंगा को अविरल बहने दो, जमना को अविरल बहने d
अब इसके बेटों ने देखो, कैसी मचाई है
लोरी गाती थी जो गंगा, वो क्रन्दन कर चिल्लाई है
रूनझुन पायल अब ना बाजे, पनघट पै ना दिखे बाला
मुल्ला पण्डित और नेता ने कितना ही शोषण कर डाला
यारों मत बांटो घाटों को, तट पर अच्छाई रहने दो
गंगा को अविरल बहने दो, जमना को अविरल बहने दो
उजले तन पर हमने खोले, कितने भीषण विष के नाले
सीवरेजो का भी मुह खोला , औधोगिक कचरे भी डाले
आने वर्षो में जब, सारी खुशिया बह जायेगी
भावी पीढी ताने देगी सूखी, गंगा रह जायेगी
सीमाए सब पर हुई , अब और परीक्षा रहने दो
गंगा को अविरल बहने दो, जमना को अविरल बहने दो
मुझको माँ कहने वालों पे, असर नही है रोने का
मेरा काम बचा है केवल, इनकी लाशे ढोने का
में हूँ एक , पाप अरब का , तर्पण ना कर पाउंगी
मेरा तर्पण कोट करेगा, बेटा जब मर जाउंगी
मृत्यु शैया पैर लेती हूँ, अन्तिम स्वांसे लेने दो
गंगा को अविरल बहने दो, जमना को अविरल बहने दो