किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



शुक्रवार, जून 11, 2010

आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे

आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे
एकाकीपन की घड़ियों में, इक दूजे का ध्यान करें

देंखे स्वप्न सलोने सुन्दर, नीड़ बनायें इक अनुपम
मधुर चांदनी में बन  जाएँ,  इक दूजे के हम शबनम
अंतर्मन के अहसासों का, आओ हम पहचान करे
आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे

आहट की अभिलाषाओं में, कब से खुला हुआ मानद्वारा
गीत मिलन के गाता जाता, ह्रदय बना हुआ बंजारा
दोनों के मन प्राण एक हों, तो राहें आसन करें
आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे

मन की दूरी, तन की दूरी, का अंतर अब दूर करें
अंतर्मन के कोरे कागज़ पर,   सतरंगी रंग भरें
आओ अपने अधरों से हम, प्रीत रीत का दान करें
आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे

में हूँ सागर तुम सरिता हो, आओ मुझमें मिल जाओ
मेरे जीवन की बगिया मैं, पुष्प सरीखी खिल जाओ
फिर हम गायें  प्रेम तराने, अदभुद सा ऐलान करें
आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे
एकाकीपन की घड़ियों में, इक दूजे का ध्यान करें
किशोर पारीक "किशोर"

मैंने जब से चलना सीखा, तबसे चलता रहा निरंतर

मैंने जब से चलना सीखा, तबसे चलता रहा निरंतर
धरती नापी, अम्बर नापा, नापे अनगिन दिशा दिशंतर
आदिकाल से इस पल का रुख, जैसा मैंने चाहा बदला 
गिरकर संभला में मुस्काता, राहों पर जब भी में फिसला 
समय चक्र की सीमा तोड़ी,  पार  किये हैं कई युगंतर 
मैंने जब से चलना सीखा, तबसे चलता रहा निरंतर

बाधा बनकर अड़ी हुई थी, ठोकर से चट्टानें तोड़ी
चाहे धुल भरे पथ कितने, मैंने डगर कभी ना छोड़ी
संकट ने देखा जब निश्चय, संग में मेरे  चला तदन्तर
मैंने जब से चलना सीखा, तबसे चलता रहा निरंतर

सूरज से गति की दीक्षा ले, गीत सफलता के में गाता
पांवों में विस्वास लिए, हरदम मंजिल को पा  जाता
तुफानो से टकराता में, सागर का नापा है अंतर
मैंने जब से चलना सीखा, तबसे चलता रहा निरंतर

इसीलिए में कहता हरदम, आशाओं के दीप जलाओ
चाहे अन्धकार हो कितना, पथ पर आगे बढते जाओ
समय घड़ी मुहरत  मत देखो, जादू टोना जंतर मंतर
मैंने जब से चलना सीखा, तबसे चलता रहा निरंतर

किशोर पारीक "किशोर"