किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



सोमवार, अप्रैल 12, 2010

गीत: मांगे फूल मिलें है खार,इनसे कैसे हो सृंगार!

मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
रक्त सना है गोपी चन्दन, थमी धड़कने चुप स्पंदन
कैसी संध्या, कैसा वंदन, आह, कराह, रुदन है क्रंदन
लुप्त हुए   है स्वर वंशी के, गूंजा भीषण हाहाकार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
दहके नगर बाग, वन-उपवन,आशंकित आकुल है जन-जन
गोकुल व्याकुल शंकित मधुबन,कहाँ छुपे तुम कंस निकंदन
माताएं बहिने विस्मित हैं, छुटी शिशुओं की पयधार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
लड़ती टोपी पगड़ी चोटी, बची इन्ही में धर्म कसोटी
मुश्किल चूल्हे की दो रोटी, अबलाओं पर नज़रे खोटी
सपनो के होते है सोदे,  अरमानो के है व्यापार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
बदला नहीं कोई मंज़र, केवल बदले साठ  कलेंडर
संसंद में गाँधी के बन्दर, बेशर्मी से हुए  दिगंबर
थमा सूर तुलसी का सिरजन, अब बारूदी कारोबार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!

किशोर पारीक "किशोर"

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