किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर" की कविताओं के ब्लोग में आपका स्वागत है।

किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



शनिवार, अप्रैल 03, 2010

मेरी माँ

मेरी माँ

ब्रह्मा यद्यपि सृष्टि रचयिता, उससे, बढ़ कर मेरी माँ 
सृष्टा के आसन पर बैठी, मुझको घढ़कर मेरी माँ 
बेटे की माँ बन जाने का, गौरव तुमने पाया था 
हुई घोषणा थाल बजाते, छत पर छढ़कर  मेरी माँ
मैं तो तिर्यक योनी में, घुटनों के बल चलता था
गिरते को हर बार उठती, हाथ पकरकर मेरी माँ
अमृत सा पय पण कराती, आँचल की रख ओट मुझे
बड़ा हुआ तो खूब खिलाती, हरदम लड़कर मेरी माँ
किये उपद्रव तोडा फोड़ी,उपालम्ब  भी खूब सहे
किन्तु नहीं अभिशापित करती, कभी बिगड़कर मेरी माँ
लगती तुम ममता   की सरिता,  मंथर गति से जो बहती
कभी बनी पाषाण  शिला  सम, आगे अड़कर मेरी माँ
तुम मेरी पैगेम्बर जननी,  तुम ही पीर ओलिया हो
शत शत शत प्रणाम अर्पित है, चरणों पड़ कर मेरी माँ
किशोर पारीक " किशोर"  ग़ज़ल

2 टिप्‍पणियां: