उनके घर फूलों की बरसा मेरे घर में बिखरे खार
उनके घर फूलों की बरसा मेरे घर में बिखरे खार
मेरा बेली तो ईश्वर है, उनका बेली भ्रष्टाचार
लोकतंत्र से तंत्र लुप्त है, खुशबू के बिन गजरे हों
हर दफ्तर का मंजर, लाशों पर गद्दों की नजरें हों
निकल खजाने से रुपया, जब नीचे लुढ़का आता है
घिसते-घिसते केवल पैसा, पन्द्रह ही रह जाता है
समरथ टुकड़े काट-काट कर, रुपये को ही खाता है
जिसके लिये चली थी मुद्रा, वह रोता रह जाता है
चमचों और दलालों का तो, दृढतम यही सहारा है
यही जिलाता दुर्जनता को, सज्जनता को मोरा है
पन्द्रह पैसे का विकास ही, बस जनता का तो आधार
मेरा बेली तो ईश्वर है, उनका बेली भ्रष्टाचार
हमने चुनकर संसद भेजा, प्रश्नों हेतु घन लेते
दीमक बन कर चाट रहे हैं, भारत को ये सब नेते
चारा बोफर्स और यूरिया, संग दलाली खाते हैं
बड़े-बड़े मंचों पर फिर, गांधी के गीत सुनाते हैं
गठबंधन-ढगबंधन मुझको, एक दिखाई देता है
जिसको देखो बहती गंगा में, अपना कर धोता है
घोटालों की लिस्ट देखिये, मीलों लम्बी होती है
नैतिकता सच्चाई भी तो, कदम-कदम पर रोती है
बड़े-बड़े मन्त्री चलते है, इसके संकेतों अनुसार
मेरा बेली तो ईश्वर है, उनका बेली भ्रष्टाचार
ये तोपों में बसा हुवा है, गोली है बंदूकों में
आता कभी ब्रीफकेसों में, बस जाता संदूक़ों में
यह तबादलों का प्रिय हेतु, दृढ़ आधार नियुक्ति का
यदी सलाख़ों पीछे लाता, यही आधार विमुक्ति का
बिगड़े काम बनाता सबके, ऐसा है यारों का यार
बाबू,,लाला, दादा, अफसर, सबका है रुचिकर आहार
कोई टेबल तले पकड़ता, नोटों की यह थैली है
गंगोत्री पर ही मां गंगा, कितनी हो गयी मेली है
बड़े-बड़े अफसर धकेलते, इसके बूते पर सरकार
मेरा बेली तो ईश्वर है, उनका बेली भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार नहीं है केवल, रिश्वत का लेना देना
नकली सौदे और मिलावट, पैसे लेकर कम देना
झूँठ बोलकर टैक्स बचाते, कितने भ्रष्टाचारी है
अपने भारत से गद्दारी, करते ये व्यापारी हैं
बगैर दाम के काम नहीं, करना जिनका हूसूल हैं
दसवीं पास खोल कर बैठे, बड़े-बड़े स्कूल हैं
हर वोटर पर आँख गड़ाये, लोकतंत्र के ये स्वामी
मेच-फिक्सिंग और हवाला, बेशर्मी शरणम गच्छामी
नारायण की क्षमता सीमित, इनका कोई अन्त न पार
मेरा बेली तो ईश्वर है, उनका बेली भ्रष्टाचार
भ्रष्ट राष्ट्रों में गणना, भारत की जब-जब होती है
भगतसिंह आजाद पटेल की ,रूह बिलख कर रोती है
भ्रष्टाचार सहोगे कब तक, ध्रष्ट्रराष्ट्र से बन अंधे
कब तक आजादी की अर्थी को, देने हमको कंधे
न्यायपालिका और मीडिया, ध्यान तनिक इस और धरें
और मुखौटा नोच इन्हें, बाज़ारों में ही नग्न करे
तरुणाई को न्योता देता, इसकी जड़ पर करो प्रहार
मेरा बेली तो ईश्वर है, उनका बेली भ्रष्टाचार
उनके घर फूलों की बरसा मेरे घर में बिखरे खार
किशोर पारीक"किशोर"
बिल्कुल सटीक रचना!! बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया सर गीत को पढकर बढिया लिखा है बिल्कुल सटीक
जवाब देंहटाएं