किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



गुरुवार, अगस्त 06, 2009

राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह

राम हमारे घट घट वासी, ह्रदय निवासिनी सीता है
पूरा देश खून के आंसू धर्म द्राहियों पीता है
राम हमारे घट घट वासी, ह्रदय निवासिनी सीता है

वाल्मीकि तुलसी क्‍या कल्‍पित, राम कथा क्‍या झूठी हैं
सिया राम मय सब जग जानी, केसी उक्‍ति अनूठी है
जन श्रद्वा पर चेट लगाते, लगता किस्‍मत रूठी है
कान तुम्‍हारे क्‍या बहरे है, या आँखें भी क्‍या फूटी है
क्यों अमरीका की उँगली से, कठपुतली बन नाच रहे
राम सेतु को रामायण को, क्यों छेनी से टाँच रहे
कल को तो तुम मां गंगा, की भी पहचान बखानोगे
और हिमालय के अस्तित्व, को ना मानोगे
राम बिना हर काया समझें, जैसे मटका रीता है
राम हमारे घट घट वासी, ह्रदय निवासिनी सीता है
नल नील थे दो अभियन्‍ता, अदभुद सेतु बनाया था
एक एक पत्‍थर को चुनकर, पानी पर तैराया था
राम सेतु ने ही रधुवर को, सीता से मिलवाया था
देत्‍याकार सुनामी लहरों से, भी मुल्‍क बचाया था
शार्टकट पर चलकर ही हम, नई मुसीबत पाते है
ओजोन परत में छेद, पिघलते ग्‍लेशियर चिल्‍लाते हैं
रामसेतु को तोडोगे तो, यहां प्रलय मच जायेगी
मौसम तो पहले से रूठा, नई आफ़तें आयेगी
ग्रन्थ हमारे सत्‍य सनातन, वेद उपनिषद गीता है
राम हमारे घट घट वासी, ह्रदय निवासिनी सीता है

राम हृदय में मुसकाते हैं, धड़कन में बसते सबके
धर्म जाति मजहब से हटकर, चाहे हो कितने तबक़े
राम हमारी श्रद्धा ममता, करुणा के अदभुद धाम है
मन से रावण जो निकल तो, सबके मन में राम हैं
जल में थल में, नभ मण्ड़ल में, राम दिखाई देते है
तन में त्रण में जड़ संगम में राम गवाही देते हे
नीर तीर में और समीर में, राम ही राम समाये है
ऐसी काई ठोर नहीं हैं, जहाँ न रामजी छाये हैं
नाम राम का लेकर मरता, राम राम कर जीता
राम हमारे घट घट वासी, ह्रदय निवासिनी सीता है
गांधी तुमने देखा सपना, रामजी का राज हो
धरम मार्ग पर जो चलता हो, उसके सर पर ताज हौ
दशकन्‍दर कुरसी पर बैठो, स्‍थिति दुखदाई है
सिसक रही मानवता बापू, धौर निराश छाई है
कोई कहता राम नहीं है, कोई न्‍यायालय जाता
मरण समाधि पर हे बापू, झूठी क़समें है खाता
पूरे जीवन भर तो तुमने, रघुपति राघव राम कहा
मरते मरते बापू तेरे, मुख पर राजा राम रहा
अपने हाथों इतिहासों में इनने दिया पलीता है
राम हमारे घट घट वासी, ह्रदय निवासिनी सीता है
सत्‍ता के मद में अन्‍धे हो, रोम रोम रटते रहते
रोम रोम में राम हमारे, उसको तुम मिथ्या कहते
अपने पुरखों की पज्ञा को, मत तुम गाली दो भाई
खंडित करो न राम चरित , मानस के दोहे चौपाई
तुमने यह अपराध किया, अधर्म ध्वजा जो रोपी है
सबके दिल में घाव किये हैं, निदां के आरोपी है
अब राम राम रट भी लोगे , तो घाव नहीं भर पायेगें
जो तीर हाथ से छूट गये, वो वापस कैसे आयेगें
गज फुट, इंच तुम्‍हारे झूठे, झूठा डोरी फीता है
राम हमारे घट घट वासी, ह्रदय निवासिनी सीता है
पूरा देश के खून के आंसू धर्म द्रोहियों पीता है
राम हमारे घट घट वासी, ह्रदय निवासिनी सीता है
किशोर पारीक " किशोर" 

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