किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर" की कविताओं के ब्लोग में आपका स्वागत है।

किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



गुरुवार, अगस्त 27, 2009

जागो ब्राह्मण जागो जागो भगवान परशुराम जयन्‍ती के अवसर पर गीत

गीत
धरती रथ जिसका चार वेद, जिसके घोड़ों के स्‍यंदन है
जो क्रांतिदूत, जमदग्‍नि पूत, उस ब्राह्मण का अभिनंदन है
सिर जटा जूट, साहस अटूट, रू रू नामक मृग की मृगछाला
इक्‍कीस बार जिसने धरणी को, वीर विहीन बना डाला
कुरूक्षेत्र धरा पर बाँध बाँध , अनगिनती बैरी काटे थे
जो पाँच सरोवर रीते थे, उसको अरि के शोणित से पाटे थे
है हय अर्जुन के सहस पुत्र, अपने ही हाथों मारे थे
उस शोर्यवान के आगे सब, अत्‍याचारी मिल हारे थे
उस वीर विप्र ने समय नब्‍ज को, सही समय पर जाना था
जब नाक तलक पानी आया, तब अपना फरसा ताना था
अवतारी के चरणों अर्पित, शब्‍दों को केसर चन्‍दन हैं
जो क्रांतिदूत, जमदग्‍नि पूत, उस ब्राह्मण का अभिनंदन है

जब परशु उठा था परशुराम को, सन्‍नाटा सा छाया था
भय बिन प्रीत नहीं होती, सिद्धान्त समझ में आया था
हम ऋषियों की संतानें हैं, ऊँचे उठने की ठाने हम
अपने पुरखों के कर्मयोग, प्रज्ञा को भी पहचाने हम
अपना एकत्‍व परशु जाने, अपना गत गौरव याद करें
बेदर्द जहां पर हो हाकिम, तब क्‍यों फिजूल फरियाद करें
हे विप्र उठो अँगड़ाई लो, चाणक्‍य सरिस बन कर आओ
ज्ञान ध्‍यान विज्ञान पढो, दुनिया पर फिर से छा जाओ
हमको अंगुलि से बता रहा, विस्‍तृत पथ वह भृगु नंदन है
जो क्रांतिदूत, जमदग्‍नि पूत, उस ब्राह्मण का अभिनंदन है

जिसके हाथों में बल होता, जग को तो वही चलाते हैं
दुनियां में वे ही पूजित हैं, उनके ही नगमें गाते हैं
जागो ब्राह्मण जागो जागो, अपने वर्णोतम को जानो
पर मरीचिका में मत भटको, तुम वर्तमान का पहचानो
जजमानी के दिन बीत गए, जजमानों ने कसली अंटी
अपनी संस्‍कृति पर निष्‍ठा पर, खतरे की आज बजी घंटी
ब्राह्मण के तो अस्‍तित्‍व तलक पर, घोर घटा मंडराई है
अब तिलक जनेऊ चोटी औ, मर्यादा पर बन आई है
ब्राह्मण के धर आज विकट, रोजी रोटी का क्रंदन है
जो क्रांतिदूत, जमदग्‍नि पूत, उस ब्राह्मण का अभिनंदन है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें