बात पते की यही हुजूर
खुरापात से रहना दूर
दिया खुदा ने उसे कबूल
उसको ये ही था मंजूर
नहीं निगाह में उसके फर्क
राजा हो या हो मजदूर
जिन्हें हुस्न पर होता नाज
वो अक्सर होते मगरूर
खोयेगा जो वक्त फिजूल
सपने होंगे चकनाचूर
चलते ही रहना दिन-रात
मंजिल अपनी कोसों दूर
सबर सुकूं की रोटी चार
बरसाती चेहरे पर नूर
बोई फसल वही तू काट
जीवन का ये ही दस्तूर
दुनियां फ़ानी समझ ‘किशोर’
सब कुछ होना हैं काफूर
किशोर पारीक "किशोर"
खुरापात से रहना दूर
दिया खुदा ने उसे कबूल
उसको ये ही था मंजूर
नहीं निगाह में उसके फर्क
राजा हो या हो मजदूर
जिन्हें हुस्न पर होता नाज
वो अक्सर होते मगरूर
खोयेगा जो वक्त फिजूल
सपने होंगे चकनाचूर
चलते ही रहना दिन-रात
मंजिल अपनी कोसों दूर
सबर सुकूं की रोटी चार
बरसाती चेहरे पर नूर
बोई फसल वही तू काट
जीवन का ये ही दस्तूर
दुनियां फ़ानी समझ ‘किशोर’
सब कुछ होना हैं काफूर
किशोर पारीक "किशोर"
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