सदियों से जोतियों में छोटी सी दरार थी जो
वही अब फैल गई, खाई जैसी हो गई
अगडों के तगड़ों के, पिछडों के झगड़ों में
देश की छबीली छवि, भाई कैसी हो गई
मंडल कमंडल से वोट बैक बन रहे
नेताओं की चाँदी है, कमाई कैसी हो गई
संसद में गूँगे बहरे, बापू तेरे बंदरों की
खोपड़ी सदेह सब मलाई, में ही खो गई
गूदड़ी के लालों का, ज्ञान जब व्यर्थ होगा
योग्यता और श्रेष्ठता को, राष्ट्र, ठुकरायेगा
तो ए पी जे कलाम, तेरा दो हजार बीस तक का
सपना अधूरा का, अधूरा रह जायेगा
समता के न्याय की धज्जियां गर यों ही उडी
प्रतिभा पलायन फिर कैसे रुक पायेगा
पढे लिखे युवकों को, रोजगार होगा नहीं
दीजिये आरक्षण तो प्राथमिक शिक्षा में दो
खूब पढवाइये और काबिल बनाइये
फेकिये आरक्षण के झुनझुने बेसाखियों को
योग्यता का माप दण्ड सबपे लगाइये
त्याग दीजे विष भरी, रेबडियां बांटना
आत्म विश्वास कुछ इनमें जगाइये
रंगे सियारों मत तोडो, मेरा देश तुम
भाइयों को भाइयों से मत लडवाइये
कवित्त
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