जिनके पदचिह्नों पर चलले, ऐसे जन निष्काम कहां है
मर्यादा कायम रहती हो, जग में ऐसे धाम कहां है
चारों और दशानन दिखते, पीड़ित हैं अनेक सीताऐं
तुलसी होते तो बतलाते, अंतर्यामी राम कहां है।
संबंधों में पड़ी दरारें, उर अन्तर में बढ़ती खाई
पवन पुत्र से सेवक नाहिं, भरत-लखन से सरिस न भाई
अतिचारों से या दहेज से, भ्रूण हनन से कन्या पीड़ित
यही इब्तिदा है तो बाबा, फिर इसका अंजाम कहा है
तुलसी होते तो बतलाते, अंतर्यामी राम कहां है।
दौड़ रही है स्वर्ण मृगों के, सारी दुनियां पीछे पीछे
पापों की पोथी है उपर, सच की दबी हुई है नीचे
लाद पोटली लाचारी की, भागे फिरते इधर उधर
बदहवास से इन लोगों के, जीवन में विश्राम कहां है
तुलसी होते तो बतलाते, अंतर्यामी राम कहां है।
चरित पतन की सभी विधाऍं, नई पीढियां सीख रही है
पहले से भी अधिक भयानक, सुरसाऍं अब दीख रही है
वीणाओं के स्वर खंडित हैं, कोलाहल ही कोलाहल है
मिले सुकून कभी थोड़ा सा, वह राका निशा याम कहां है
तुलसी होते तो बतलाते, अंतर्यामी राम कहां है।
Kishore Pareek " Kishore"
गीत
kishorji!
जवाब देंहटाएंitanee sundar rachanaa ke liye badhaai sweekaar karein.