कैसा भी हो संकट प्यारे, उससे पर उतरता जा
बरसों से जो अटके- लटके, झटके से पूरे होंगे
हर पड़ाव पर अहलकार के, हाथ गर्म तू करता जा
आपने झगडे खुद निपताले, कोर्ट कचहरी मत जाना
दल दल मैं तू फसाना चाहे, सुन उपचार बताता हूँ
राजनीती के तहखानों में क़दमों कदम उतरता जागीत ग़ज़ल, छंदों की बातें, करना अब तू छोड़ सखे
चुरा लतीफे पढ़ मंचों पर, आपने आप निखरता जा
धोले बहती गंगा में तू, अपने दोनों हाथ "किशोर"
पकड़ी है जो मछली तुने, शनै शनै कुतरता जा
किशोर पारीक" किशोर"
kya bat hai , acchi shuruaat hai
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