दुआ देते हाथ ही, बायस बने आघात का
कुछ भरोसा ही नहीं है, आज के हालत का
बगवां गुलशन में रखे, जब कभी अपने कदम
ध्यान रखना फूल के, तितली के भी जजबात का
पिट यहाँ सकते मुसाहिब, प्यादियाँ फर्जी बने
राजनीती खेल है अब, सिर्फ किस्तो मात का
ढूँढते हो शरबती, आँखों में हरदम मस्तियाँ
मोल वे क्या कर सकेंगे, अश्क के जजबात का
खुशनुमा दोपहर गुजरी, शाम भी हो खुशनुमा
होश कारलो गफिलों, आगे अँधेरी रात का
किशोर पारीक" किशोर"
nice
जवाब देंहटाएंbahut sundar gazal hai.
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज
किशोरजी !
जवाब देंहटाएंआपरी कवितावां अर गज़लां घणी चोखी अर फूटरी लागी. घणी घणी बधाई !
जगह जगह वर्तनी री अशुद्धियाँ नज़र आवे छै. थोड़ो ध्यान दिरावो.