आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना
जब दो टके में मिलता था, पेट भर के खाना
नदियाँ सी बह रही थी, घी दूध की वतन में
तिन्नाने की मलमल, चवन्नी का चोगाना
बस दो रूपये में , बनता था सूट एक जनाना
उस वक्त डालडा ने, सूरत न थी दिखाई
इन खाक सूरतों पर, न मुर्दनी थी छाई
बीमारियाँ न दिल की, इतनी बढ़ी हुईथी
न ही ये जवानियाँ यूं, फीकी पड़ी हुई थी
महंगाई का न झगडा, न कम की कमी थी
इमान की कमाई, इज्जत की जिन्दगी थी
अब वक्त आ गयाहै, कुछ एसी बेबसी का
होता नहीं गुजरा, बस रोना है उसी का
भारत का हाल क्या है, ले देख आँख वाले
मरते हैं लोग भूके, है रोटियों के लाले
पैसे की कद्रो कीमत, मिटटी में मिल गयी है
घी दूध की ये ताकत, चाय में घूल गगी है
घूमना ना फिरना, हाय पैसा कमाना
आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना
जब दो टके में मिलता था, पेट भर के खाना
नदियाँ सी बह रही थी, घी दूध की वतन में
तिन्नाने की मलमल, चवन्नी का चोगाना
बस दो रूपये में , बनता था सूट एक जनाना
उस वक्त डालडा ने, सूरत न थी दिखाई
इन खाक सूरतों पर, न मुर्दनी थी छाई
बीमारियाँ न दिल की, इतनी बढ़ी हुईथी
न ही ये जवानियाँ यूं, फीकी पड़ी हुई थी
महंगाई का न झगडा, न कम की कमी थी
इमान की कमाई, इज्जत की जिन्दगी थी
अब वक्त आ गयाहै, कुछ एसी बेबसी का
होता नहीं गुजरा, बस रोना है उसी का
भारत का हाल क्या है, ले देख आँख वाले
मरते हैं लोग भूके, है रोटियों के लाले
पैसे की कद्रो कीमत, मिटटी में मिल गयी है
घी दूध की ये ताकत, चाय में घूल गगी है
घूमना ना फिरना, हाय पैसा कमाना
आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना
आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना
जवाब देंहटाएंSHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
बहुत खूब लिखा आपने । अब वो मौसम कहाँ, जहाँ इन्सान खुली हवा मे सासँ ले सके ।
जवाब देंहटाएं"घूमना ना फिरना, हाय पैसा कमाना
आता है याद मुझको, गुजरा हुआ जमाना"
बहुत खूब । बधाई ।
बहुत खूब लिखा आपने । अब वो मौसम कहाँ, जहाँ इन्सान खुली हवा मे सासँ ले सके ।
जवाब देंहटाएं