किशोर पारीक "किशोर"

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गुरुवार, मार्च 25, 2010

नेनों ने किया कमाल, सजनियाँ मुस्काई, होली में हुआ निहाल, बजी मन शहनाई !

नेनों ने किया कमाल, सजनियाँ मुस्काई,
होली में हुआ निहाल, बजी मन शहनाई !
रूप की दमक जैसे, हीरे की चमक जैसे,
कुंतल से छन -छन चांदनी फुआर हो
लोचन कटार धार, करे यार ऐसी मार,
बींधती करेजवा को, हुई आर- पार हो
कोई सी आवारा लटें, डोलती कपोलन पे,
चूम आचमन करे, फल रसदार हो
गोरियाँ लजाई, मुख अंगूरी दबाई,
मानो बिजुरी गिराई, लगा प्रीत की खुमार हो
सेनों से किया सवाल, साथ में अंगड़ाई ,
होली में हुआ निहाल, बजी मन शहनाई

एक एक पल मुझे साल के सामान लगे ,
कटी कैसे मेरी यार, एक वो विभावरी
प्रीत रोग हुआ नया, नींद उडी चेन गया,
में तो हुआ बावरा सा,संग वो भी बावरी
कल्पना में रही साथ, चंद्रमुखी उस रात,
याद आती रही मुझे ढेर सारी शायरी
बार बार कोंधती थी, दामनी हिये में मेरे,
चांदनी सुखद लगी शीत में जो तावरी
ये कैसा मचा बबाल , याद अक्षर ढाई,
होली में हुआ निहाल, बजी मन शहनाई


प्रीत की मली गुलाल, गोरिया के दोनों गाल
पिच्चकारी रंग लाल , लगी अंग अंग के
सर र र , सर र र, कामनी के अर र र र
टूट गए तंग , उस मोहनी पतंग के
लगा थम जाये घडी,बिन पिए ऐसी छड़ी
सुरताल बज उठे , हिये की मृदंग के
गमकते जैसे हो गए सजीव मित्र
कैसे रचु चित्र मैं, विचित्र से प्रसंग के
मैं हो गया माला मॉल , छबीली इतराई
नेनों ने किया कमाल, सजनियाँ मुस्काई,
होली में हुआ निहाल, बजी मन शहनाई

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