होली पर दोहे
गुल तितली से यों कहे, कैसे खेलूँ फाग
भ्रमरों ने की ज्यादती, लूटा सभी पराग
हीरा पन्ना दिल हुआ , तन जैसे पुखराज
नैना नीलम दे रह, नवरतनी अंदाज
देख रूप उनका हुआ, मैं होली पर दंग
चेतन से मैं जड़ हुआ, माँ में बजी मृदंग
तट ने पूछा दूर से, टापू क्या है बात
जातीं लहरें दे गयी, चुम्बन की सौगात
प्रियतम के संकेत पर,ज्यों ही खोला द्वार
जाना कुछ ही देर में, महंगी थी मनुहार
काज़ल बोला आँख से, तुम हो पानीदार
मेरी सांगत कर बनो, तीखी कुटिल कटार
गली गरारे गोरियां, नहीं गोप नहीं फाग
गीतों में झरता न अब, पहले सा अनुराग
कृतिकार और लेखनी, कव्यलोकी मंच
गीत ग़ज़ल ले दोड़ते, शब्दों के सरपंच
nice
जवाब देंहटाएं