खुशबु कैसे महके मेरे गीतों में
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ
लिखता हूँ मैं दर्द जमाने के यारों
लिखता तो पीछे हूँ पहले रोता हूँ
ठंडी रातें बिता रहे फुटपाथों पर
मेरे शब्द चित्र उनको सहलायेंगे
पोंछ सके गर आंसू उनकी आँखों के
तबही सच्चे नगमे गीत कहायेंगे
कितने भी तूफान डराए धमकाये
ले पतवारे खड़ा साथ में होता हूँ
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ
अलंकर छंदों की भाषा, क्या जानू
उपमा नवरस स्लेश भाव क्या होते है
मुझको तो बस दर्द दिखाई देता है
मैं जनमानस के क्रंदन का स्रोत हूँ
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ
कदम बढ़ाते मात्रभूमि की रक्षा में
मेरी कलम नमन करती उन वीरों का
जो दुश्मन को धुल छठा दे छन भर में
वंदन करती कलम उन्ही शमशीरों का
विजय पताका लिए लोटता जब रण से
शब्द सुमन के हार अनेक पिरोता हूँ
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ
जो पापी अन्यायी है अत्याचारी है
मेरी कलम सबक उनको सिखलाएगी
भारत माँ की छाती में जो घाव करे
कलम यही ओकात उन्हें बतलाएगी
किन्तु शहीदों के अति पावन चरणों को
शब्द अश्रु के गंगा जल से धोता हूँ
में कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ
खुशबु कैसे महके मेरे गीतों में
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ
लिखता हूँ मैं दर्द जमाने के यारों
लिखता तो पीछे हूँ पहले रोता हूँ
एक-एक शब्द वास्तव में आग है!ऐसे ही आग बोते रहे....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया....
कुंवर जी,
सच में आप आग की खेती करते है। कुछ हमलोगों को भी दिजिए
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़या
word verification hata den to logon ko subidha hogi.
Bahut hi badhiya lekhe ho bhai....issi tarah likhte jaye maaf kijiyega aag barsate jayen.
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