किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



मंगलवार, मार्च 23, 2010

तरह तरह के स्वांग रचाते ये बाबा, गिरगिट को भी परे बिठाते ये बाबा

तरह तरह के स्वांग रचाते ये बाबा,
गिरगिट को भी परे बिठाते ये बाबा
राम नाम पर दम कमाते ये बाबा
तिरवेनी मेली कर आते ये बाबा !

उजला इनका वेश, चरितर काला है
दिन में इनके हाथ, कमंडल माला है
निश में प्याला, बाला है, मधु शाला है
मदनोत्सव हर रोज, मनाते ये बाबा,

तरह तरह के स्वांग रचाते ये बाबा,

नाम योग का, किन्तु भोग में भरमाना
रब से पब तक, का रखते है याराना
तकिया तोशक, साकी संग पीना खाना
इन्द्र अखाडा नित्य सजाते ये बाबा !
तरह तरह के स्वांग रचाते ये बाबा,

उपकारी ये नही, बहुत है अपकारी
ये विषधर है, मणिधारी, इच्छाधारी,
ये कुंठित अति अर्थ कम के व्यापारी
धर्म के बदले, पाप कमाते ये बाबा !
तरह तरह के स्वांग रचाते ये बाबा,

ये तो अपने बुड्डों के भी बापू हैं
परिग्राही है छदम लुटेरे डाकू हैं
मुख से बोले राम, बगल में डाकू हैं
बातों में बेन्कुंत पढ़ाते ये बाबा !
तरह तरह के स्वांग रचाते ये बाबा,

मत पालो इनके चक्कर में तुम पंगा
मन चंगा तो, है कठोती में गंगा
इनसे भला "किशोरे" गली का भिखमंगा
लाखों हड़प भभूत, टिकाते ये बाबा
तरह तरह के स्वांग रचाते ये बाबा,

तरह तरह के स्वांग रचाते ये बाबा,
गिरगिट को भी परे बिठाते ये बाबा
राम नाम पर दाम कमाते ये बाबा
तिरवेनी मेली कर आते ये बाबा !




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