किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



बुधवार, मार्च 31, 2010

प्रीत के मुक्तक

लिख दिया मेने तुम्हारा,  नाम अपनें नाम पर 
भौर की पहली किरण से. झिलमिलाती शाम तक 
आ भी जाओ रागिनी बन, गीत की मेरी प्रिये 
ज्यों लुटाई राधिका ने, प्रीत अपने श्याम पर  
गुनगुनाता है सवेरा, खिलखिलाती   धूप है
होश खो बैठे रयो देखे, रंक है या भूप है 
चांदनी सा अक्स हो, कैसी मधुर मुस्कान हो
नयन तक झपकूं नहीं में, क्या तुम्हारा रूप है
मौन  मुझको लग रहा, मानस की ज्यों चोपाइयां 
नयन जैसे कह रहे हों, मीर की रुबाइयां 
मुस्कान अधरों की तुम्हारे, गीत गोविन्दम लगे 
बन भी जाओ मीत मेरे, तुम मेरी परछाइयां
जो हुआ अच्छा हुआ, कैसे हुआ ये क्या हुआ
खो गया था भीड़ में, पर प्यार से तुमने छुआ
डबडबाये  नैन सब कुछ, दे गए पल भर में यूँ
जिन्दगी भर मांगता, रब से रहा में ज्यो दुआ
बंद पलकें है मेरी पर दीखता आकर है
शब्द अधरों से उतर कर, हो रहे साकार है
फर्क अब पड़ता नहीं , धूपमे और छावं में
पूछता संसार से बोलो, यही काया प्यार है
मन  के भाव को अधरों तलक हम ला नहीं पाए
तन के चाव को तुमको, कभी दिखला नहीं पाए
हमारी आँख के मोती, ढुलककर कर आपसे कहते
नगमे प्यार के सरकार, हम तो गा नहीं पाए