किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर" की कविताओं के ब्लोग में आपका स्वागत है।

किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



सोमवार, जुलाई 06, 2009

जून माह की काव्‍यगोष्‍ठी

मौन शंकर मौन चंण्‍डी देश में, हो रहे हावी शिखंडी देश में
काव्‍यालोक की मासिक काव्‍यगोष्‍ठी में चली कविता की अविराम
वजीर सदन आदर्श नगर, जयपुर में आयोजित काव्‍यालोक जयपुर की मासिक काव्‍यगोष्‍ठी में ढूढाडी के वरिष्‍ठ गीतकार बुद्विप्रकाश पारीक की अध्‍यक्षता में गुलाबी नगर के कवियों, गीतकारों ने देर रात तकअपने गीतों गजलों एवं दोहों की त्रिवेणी से जमकर रस बरसाया। संघर्षों के सुधी शायर एवं पूर्व मंत्री जोगेश्‍वर गर्ग के अशआरों ने खूब दाद पायी 'करें है याद भी गर तो सताने के लिये कोई, हमारा नाम लिखता है मिटाने के लिये कोई, तेरी महफिल से उठ कर आ गया उम्‍मीद ये लेकर, पीछे आ रहा होगा, मनाने के लिये कोई। और व्‍यवस्‍थाओं पर चोट करते हुए जोगेश्‍वर ने इस अंदाज में कहा 'मौन शंकर मौन चंण्‍डी देश में, हो रहे हावी शिखंडी देश में, है टिका आकाश इनके शिश पर, सोचते हैं कुछ घंमडी देश में। रागात्‍मकता के कवि आर सी शर्मा गोपाल ने ईमान धरम की अहमियत पर जोर डालते हुवे अपने दोहों में कहा कि 'सब कुछ है जिनके लिये धरम और ईमान, जीवन उनका कार्तिक सांसे है रमजान। और मंहगाई पर ' आम दिनों के खर्च ही चलना है दुश्‍वार, मुफलिस की तो मौत है, आये दिन त्‍योंहार। काव्‍यालोक के अध्‍यक्ष नन्‍दलाल सचदेव ने हाल ही दिवंगत वाचिक पंरम्‍परा के चार कवियों को श्रद्वाजंली अर्पित करते हुवे गीत पढा ' माना हो जायेगे इक दिन मंच से किरदार गुम, जिंदगी से हो ना पायेंगे कभी आधार गुम, रास्‍ते खेले बहुत आमद बढी रफतार भी, सर से होते जा रहे है, पेड छायादार गुम।
गोष्‍ठी का संचालन करते हुवे कवि किशोर पारीक 'किशोर' अपनी व्‍यंग्‍य रचना में फादर्स डे पर पीढीयों के दंश को ढूढाडी गज़ल ' रिश्‍ता होगा डेड पिताजी थे छो कोडै, बदल्‍यो ऐ टू जेड पिताजी थे छौ कोडै' में खुब वाह वाही लूटी। कलम के अनूठे चितेरे कवि मुकुट सक्‍सेना ने ' उसने पीछे से मेरी आखें हथेली से ढक्‍ी, इस तरह पर्दे रही, बेपर्दगी अच्‍छी लगी' से सब का ध्‍यान आकर्षित किया । कवि वैघ भगवान सहाय पारीक ने पाकिस्‍तान एवं अमेरिका की दोस्‍ती पर व्‍यंग्‍य गीत पढा ' पाला आज सपोला कल होगा बिकराल सपेरे विषधर मत पाल'
सदाकन्‍द पसंन्‍द शायर रजा शैदाई ने हुस्‍न के बदलते मिजाज मिजाज पर इशारा किया ' कोई काफर जब़ी शरमा रहा है, सितारों का पसीना आ रहा है' इलाही क्‍या जमाना आ रहा है, मिजाजे हुस्‍न बदला जा रहा है। शायर मनोज मित्‍तल केफ ने पूरी कायनात में इंसान की स्थिति पर अपने कता पढे ' कहूं किससे हाल ए हयात मैं, गमें जिन्‍दगी से सरहक हूं, जो फलक की आंख से गिर गया, मैं जमीं पर वही अश्‍क हूं। टोंक के गीतकार गोविन्‍द भारद्वाज ने अपने दोंहों में शहरों की और पलायन करते लोगों को वहां की बेहाली से सावचेती का बात अपने दोंहो में कही ' गांव छोडकर आ गये, क्‍यों शहरों की और, पता नहीं तुमको यहॉं कितने आदमखौर,। सिद्वहस्‍त वरिष्‍ठ कवि बिहारीशरण पारीक ने अपनी ब़जभाषा रचना ' लल्‍ली है कि लल्‍ला है ' को रोचक अदांज में पेश किया। कोष्‍ठी में गोपीनाथ गोपेश, चन्‍द्र पकाश चन्‍दर, गोविन्‍द मिश्र, सोहन प्रकाश सोहन, विशन लाल अनुज, चम्‍पालाल चौरडिया, तब्‍बसुम रहमानी, नाथूलाल महावर, अज्‍ज्‍वला अरोडा, गगन मालपाणी , सरूर खलिकी, ईनाम शरर, अजीज अयूब्‍ी, दर्द अकवराबादी ने भी काव्‍य पाठ किया । कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि शायर एवं पूर्व मंत्री जोगेश्‍वर गर्ग थे। अन्‍त में काव्‍यालोक के अध्‍यक्ष नन्‍दलाल सचदेव ने आभार ज्ञापित किया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें