म्हारी कविता पोथी पाना, रददी हाळा ने बेच्याई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
जद भी मैं सरस्वती पूजूं, वा खैवे लिछमी जी ध्यावो
बैठाओ ड़ोळ कमाई को, घर मांहीं दो पीसा ल्याओ
कविता ने छोड़ो बालम जी, चाहे बण जाओं हलवाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
अब सूझे ना हीं गीत वीत, नहीं छंन्द खोपडी में आवे
क्यू थोड़ो घणो सोच पाउं, वा जागै खाबा न धावै
मूंसा की ज्यू में जा दुपक्यो, वा म्यांउ की ज्यूं झपटयाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
मन का भाव दुब्या रैग्या, कल्पना हुई नो दो ग्यारा
अक्षर सें डूब्या पाणी में, सब्दां की सूखी सब धारा
जद जद कलम उठाउं छूं, आ जावे छ उंका भाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
वा बोली मत पोतो कागज, थे साजन लीडर थे बण जाओ
पीढयां म्हाकी तर जावेली, मंचा उपर तण जाओ
झांको लल्ली को काको, लड कर चुनाव कुरसी पाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
दो कोडी मोल न कविता को, कविता सूं रोटी नहीं मिले
काविता सूं टाबर नहीं पळे, कविता सूं कूण सा फूल खिले कविता की ठौर बणाओ थे, रूपया, पीसा, आना पाई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
म्हारी कविता पोथी पाना, रददी हाळा ने बेच्याई
कविता तो म्हारी सोतण छै, घर हाळी कहती घुर्राई
किशोर पारीक 'किशोर'
WOW
जवाब देंहटाएंAAP KI PIDA BHI MERE PITAJI JESI HE
आपरो ब्लॉग देख'र मन घणो हरख्यो। राजस्थानी में बंतळ किन्नै चोखी कोनी लागै।
जवाब देंहटाएंबधाई।
पण पाछली पोस्ट देखण लाग्यो तो काळज्यो सूनो होग्यो, बुद्धिप्रकाशजी कोनी रैया। बहोत बडी खबर है आ राजस्थानी सारू अर ठा लागै इंयां।
अखबारां री स्थानीयता ले बैठी सो-कीं।
म्हारो वां नै निंवण।
म्हारी बां सूं मुलाकात पेटै कीं लिखसूं। वां री 'ईसरलाट' पांण करीज्यी सेवा कुण भूल सकै। ईसरलाट रै जोगदान रो तो म्हैं म्हारै ब्लॉग हेलो (www.dularam.wordpress.com) मांय पैलां सूं कीं दे राख्यो है।
श्रद्धाजंलि लिखसूं।