कवि बुद्धिप्रकाश पारीक को कवियों ने दी काव्यांजली
प्रताप नगर, जयपुर में आयोजित लेखनी साहित्यिक संस्था जयपुर की मासिक काव्यगोष्ठी में ढूढाडी के वरिष्ठ गीतकार बुद्विप्रकाश पारीक को गुलाबी नगर के कवियों, गीतकारों ,एवं शायरों रविवार देर रात तकअपने गीतों गजलों एवं दोहों के माध्यम से काव्यांजलि अर्पित की! ढूढाडी के वरिष्ठ गीतकार बिहारी शरण पारीक की अध्यक्षता एवं किशोर पारीक के सञ्चालन में आयोजित कवियों के सर्व प्रथन वेद्य भगवानसहाय ने माँ शारदा की वंदना से गोष्ठी का आगाज़ किया ! संघर्षों के सुधी शायर रज़ा शैदाई ने अपने तरन्नुम भरे अंदाज़ में अशआर पढ़कर खूब दाद पायी . "
अच्छे इन्सान का बरसों में जन्म होता है,
ऐसा इन्सान चला जाये तो गम होता है.
मुद्दतों रोयेंगे सब ही वो बशर जाता रहा,
एहले दिल जाता रहा, एहले नज़र जाता रहा"
काव्यालोक के अध्यक्ष नन्दलाल सचदेव ने बुद्विप्रकाश पारीक को श्रद्वाजंली अर्पित करते हुवे गीत पढा! '
माना हो जायेगे इक दिन मंच से किरदार गुम,
जिंदगी से हो ना पायेंगे कभी आधार गुम,
रास्ते खोले बहुत आमद बढी रफतार भी,
सर से होते जा रहे है, पेड छायादार गुम।
अपने दूसरे गीत में नन्दलाल सचदेव ने बुद्धि प्रकाश जी की गगन समान व्यक्तिता एवं कृतित्व को कुछ इस अंदाज़ में पेश किया !
जो कविता की प्यास था, आसपास था, आम था पर खास था ,
हास्य का अहसास था, वो बुद्धि का ही प्रकाश था ,
कविता की लो लगा गया, गीत गयल ज़गा गया ,
गज़ब का काव्य तराश था, ऊँचाई में कैलाश था,
करते शत शत नमन, वीणा पानी अरदास था
गोष्ठी का संचालन करते हुवे कवि किशोर पारीक 'किशोर' ने बुद्विप्रकाश पारीक का स्मरण करते huee अपने ढूढाडी गीत की इन पंक्तियों से अपने माँ की वेदना को व्यक्त किया.
मायड भाषा मोन हुई अब, हुयो घणो नुकसान छै
झरता नेना नीर थम्या सब, गीत ग़ज़ल मुस्कान छै,
दीप भुज्यो ढूंढाड़ी को तो, सगळा ही हैरान छै
जेपर म्हांको कविवर थां बिन, दीख रह्यो वीरान छै,
थाने म्हें आकाश कहूं , या छाया हालो दरख कहूं
आँख्यां सूं हरदम झरवालो, कविवर थांने हरख कहूं,
संसद छ चोपाल काव्य की, ढूंढाड़ी की शान छै
कलम के अनूठे चितेरे कवि मुकुट सक्सेना ने बुद्विप्रकाश पारीक के संस्मरण के साथ अपने भावों को यों बयां किया.
जितने मन बहलाने को जीवन के नाम धरे,
उतनी अनजानी पिडासे आंसू ओर झरे
किन्तु पूरानी यादों का संबल ऐसलागता है,
कोइ बुझे दीजे में फिर से तेल भरे
बृजभाषा के वरिष्ठ कवि नाथूलाल महावर अपने दोहों के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त किया.
सूर गए, तुलसी गए,गए वे केशवदास,
उनके पीछे अब गए, कविवर बुद्धि प्रकाश
जिनने जीवन में जिया, मधुरस हास्य हुल्लास
अमर हास्य को कर गए, कविवर बुद्धि प्रकाश
वरिष्ठ शायर हिम्मत सिंह बारहट शाद ने बड़े ही खूबसूरत लफ़्ज़ों में अपनी बात कही .
सफ़र हयात का यों तयकर गया कोइ
बड़े करब से उठकर चला गया कोइ,
बुद्धि प्रकाश के काव्य से आत्मसात हुए तो
यों लगा जैसे शब्दों में, मोती पिरो गया कोइ
शायर प्रेम पहड्पुरी ने कहा
ममता उठी धरा बन गयी, ओर प्यार आकाश बनगया
इतना स्नेह दिया था सबको, जो की आज संत्रास बन गया
काव्यांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए ढूढाडी के वरिष्ठ गीतकार बिहारी शरण पारीक ने अपनी ढूढाडी रचना के मद्यामसे उद्गार व्यक्त किये
नित्य गढ़-गढ़ मुरत्यां, विधना करे अभ्यास छै,
लाख में से एक कोइ, बण्यो बुद्धि प्रकाश छै,
सुरग में उत्सव हुयो, धरा पर मातम छायो
अंजुमन बेनूर,कवि मजबूर घणा उदास छै
गोष्ठी में चन्द्र पकाश चन्दर, अजीज अय्यूबी ,सुशीला मीना, शोभा चंदर, कविन्द्र ठाकुर, अब्दुल गफ्फार, भव्य सोनी, महावीरसोनी,देवशर्मा, शिव चंद जैन , ने भी काव्य पाठ किया । अन्त में लेखनी साहित्यिक संस्था जयपुर की अध्यक्ष विमला शर्मा वीनू ने आभार ज्ञापित किया।
प्रस्तुति . किशोर पारीक
अच्छे इन्सान का बरसों में जन्म होता है,
जवाब देंहटाएंऐसा इन्सान चला जाये तो गम होता है.
मुद्दतों रोयेंगे सब ही वो बशर जाता रहा,
एहले दिल जाता रहा, एहले नज़र जाता रहा"
किशोर जी !कवि बुद्धिप्रकाश पारीक जी का परिचय और भावपूर्ण संस्मरण के लिए आभार
सुन्दर प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
अच्छे इन्सान का बरसों में जन्म होता है,
जवाब देंहटाएंSACH HAI HAI AAPNE KISHORE JI