किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



शुक्रवार, मई 14, 2010

इतना दूर चला हूँ , फिर भी मंजिल नहीं मिली

गीत

केवल दिखलाने को सारे, कात रहे तकली
मुस्काने जो मिलीं हजारों, ज्यादातर  नकली
घुप्प अँधेरा था पर, कोइ शम्मा  नहीं जली
इतना दूर चला हूँ , फिर भी  मंजिल नहीं मिली

                                                        सपनो की बन्दनवारों ने, मंगलाचरण किया
धूप खिली तो मृगत्रशना ने, सब कुछ हरण किया
आदर्शों की जुजबन्दी से, पोथी गयी सिली
इतना दूर चला हूँ , फिर भी  मंजिल नहीं मिली






बियाबान में थकन उदासी, ओर बिछावन  घास 
लेकिन विधना संग मैं मेरे, इसका  था आभास
मेली चादर फटी हुई सी, वो भी नहीं सिली
इतना दूर चला हूँ, फिर भी मंजिल नहीं मिली

अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर, ढूँढ रहे थे नैन
जिन बिरवों के नीचे बैठा, वो खुद थे बैचेन
कथनी करनी के अंतर मैं,मन   की नहीं चली
इतना दूर चला हूँ , फिर भी मंजिल नहीं मिली

कहा पवन के इक झोकें ने, भर मेरी बाहें
पगडंडी को छोड़  बावले , निर्मित कर  राहें
विश्वासों की चट्टानों से राह  नई निकली
इतना दूर चला हूँ, फिर भी मंजिल नहीं मिली

केवल दिखलाने को सारे, कात रहे तकली
मुस्काने जो मिलीं हजारों, ज्यादातर  नकली
घुप्प अँधेरा था पर, कोइ शम्मा नहीं जली
इतना दूर चला हूँ , फिर भी मंजिल नहीं मिली

किशोर पारीक"किशोर"

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