बेट्याँ पूजी जाय जठे छै, वीं घर में भगवान छै बेट्याँ बिना अलूणों घर छै, मीठा बिन पकवान छै
खूब जमाँ राजस्थानी भाषा कवि सम्मलेन
खूब जमाँ राजस्थानी भाषा कवि सम्मलेन
राजस्थानी भाषा की मिठास ओर उसके देशज शब्दों से आती माटी की सोंधी महक से बुधवार १२ मई को जयपुर के रविन्द्र मंच की शाम गुलज़ार हो गई |अवसर था राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर, सबरंग संगीत संस्थान व रविन्द्र मंच सोसाइटी की ओर से आयोजित राजस्थानी भाषा कवि सम्मलेन |
रविन्द्र मंच के मुख्य सभागार में राजस्थानी मायड भाषा के देश के ख्याति प्राप्त कवियों कल्याणसिंह राजावत, मुकुट मनिराज, शकुंतला सरूपरिया, बिहारी शरण पारीक, किशोरजी किशोर एवं भवंर जी भंवर ने इस सवा घंटे की महफ़िल को खुशनुमा बनाकर अपने काव्य रस की वर्षा से श्रोताओं को जमकर गुदगुदाया।
कवि सम्मलेन की शुरुआत में हाडोती कवि मुकुट मणिराज ने माँ सरस्वती के चरणों में निम्न शब्दों से अपने भाव सुमन अर्पित किये "म्हारी जीभ की जाजम पे डोरा ड़ाल दे,म्हारा हिरदे का चौका पे गाडी गाळ दे" एवं अपना गीत छोरी आती जाती होगी को सुनाकर श्रोताओं को नव विवाहिता के जीवन में आये बदलाव से रूबरू कराया!
इसके बाद कवि सम्मलेन के संयोजक किशोर पारीक "किशोर" ने बेटियों पर केन्द्रित कविता "बेट्याँ पूजी जाय जठे छ, वीं घर में भगवान छ बेट्याँ बिना अलूणों घर छ मीठा बिन पकवान छ "सुनाकर आँखे नम कर दी |
गुलाबी नगरी के वरिष्ट कवि भवरजी भवर ने अपने काव्यात्मक परिचय में ही सबके तालियाँ एवं ठहाके बटोर लिए |उनके गीत बोली भूल्या पुरर्खां की" पर देशज भाषा की मिठास ओर भंवर के प्रस्तुतिकरण से आल्हादित सभागार देर तक तालियों से गूंजता रहा |
उदयपुर से आई कवयित्री शंकुंतला सरूपरिया ने गीत " धीमे धीमे चाल्यो चांद, होले होले चाल्यो चांद,सिली सिली रात समेटे सियाला रो चांद, उतरयो रे मंदरो मंदरो चांद" सुना कर सबका दिल जीत लिया |
ढूढाडी के वरिष्ट कवि बिहारीशरण पारीक ने अपनी ढूढाडी रचना "सुणज्यो म्हामे काई बीती एक बार बफर का खाना में" के माद्यम से बफर भोज की विसंगतियों पर जम कर व्यंग के तीर चलाये व श्रोताओं को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया !
राजस्थानी के वरेण्य कवि कल्याण सिंह राजावत ने अपनी चिरपरिचित रचना लीरा लीरा जिन्दगी जमारो जिया तो करो ,थोड़ी थोड़ी प्रीत री मद पिया तो करो सुनाकर श्रोताओं को जाती लिंग, गरीबी अमीरी के भेद को भुला कर जीवन जीने की प्रेरणा दी|
कवि सम्मलेन का संचालन कर राहे कवि संपत सरल ने अपनी हिंदी व्यंग रचना "गुरु शंख चेले धफोल शंख" सुनाकर शिक्षा व्यवस्था पर व्यंग वाण छोड़े ! कवि सम्मलेन के मुख्य अतिथि प्रमुख शासन सचिव कला एवं संस्कृति उमराव सालोदिया एवं अध्यक्ष वरिष्ट कांग्रेस नेता राजीव अरोड़ा ने की ! अंत में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के सचिव प्रथ्वीसिंह रतनु ने आभार ज्ञापित किया! बड़ी संख्यां में काव्य रसिकों ने अस राजस्थानी कवि सम्मलेन का लुफ्त लिया|
प्रस्तुति - किशोर पारीक "किशोर"
रविन्द्र मंच के मुख्य सभागार में राजस्थानी मायड भाषा के देश के ख्याति प्राप्त कवियों कल्याणसिंह राजावत, मुकुट मनिराज, शकुंतला सरूपरिया, बिहारी शरण पारीक, किशोरजी किशोर एवं भवंर जी भंवर ने इस सवा घंटे की महफ़िल को खुशनुमा बनाकर अपने काव्य रस की वर्षा से श्रोताओं को जमकर गुदगुदाया।
कवि सम्मलेन की शुरुआत में हाडोती कवि मुकुट मणिराज ने माँ सरस्वती के चरणों में निम्न शब्दों से अपने भाव सुमन अर्पित किये "म्हारी जीभ की जाजम पे डोरा ड़ाल दे,म्हारा हिरदे का चौका पे गाडी गाळ दे" एवं अपना गीत छोरी आती जाती होगी को सुनाकर श्रोताओं को नव विवाहिता के जीवन में आये बदलाव से रूबरू कराया!
इसके बाद कवि सम्मलेन के संयोजक किशोर पारीक "किशोर" ने बेटियों पर केन्द्रित कविता "बेट्याँ पूजी जाय जठे छ, वीं घर में भगवान छ बेट्याँ बिना अलूणों घर छ मीठा बिन पकवान छ "सुनाकर आँखे नम कर दी |
गुलाबी नगरी के वरिष्ट कवि भवरजी भवर ने अपने काव्यात्मक परिचय में ही सबके तालियाँ एवं ठहाके बटोर लिए |उनके गीत बोली भूल्या पुरर्खां की" पर देशज भाषा की मिठास ओर भंवर के प्रस्तुतिकरण से आल्हादित सभागार देर तक तालियों से गूंजता रहा |
उदयपुर से आई कवयित्री शंकुंतला सरूपरिया ने गीत " धीमे धीमे चाल्यो चांद, होले होले चाल्यो चांद,सिली सिली रात समेटे सियाला रो चांद, उतरयो रे मंदरो मंदरो चांद" सुना कर सबका दिल जीत लिया |
ढूढाडी के वरिष्ट कवि बिहारीशरण पारीक ने अपनी ढूढाडी रचना "सुणज्यो म्हामे काई बीती एक बार बफर का खाना में" के माद्यम से बफर भोज की विसंगतियों पर जम कर व्यंग के तीर चलाये व श्रोताओं को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया !
राजस्थानी के वरेण्य कवि कल्याण सिंह राजावत ने अपनी चिरपरिचित रचना लीरा लीरा जिन्दगी जमारो जिया तो करो ,थोड़ी थोड़ी प्रीत री मद पिया तो करो सुनाकर श्रोताओं को जाती लिंग, गरीबी अमीरी के भेद को भुला कर जीवन जीने की प्रेरणा दी|
कवि सम्मलेन का संचालन कर राहे कवि संपत सरल ने अपनी हिंदी व्यंग रचना "गुरु शंख चेले धफोल शंख" सुनाकर शिक्षा व्यवस्था पर व्यंग वाण छोड़े ! कवि सम्मलेन के मुख्य अतिथि प्रमुख शासन सचिव कला एवं संस्कृति उमराव सालोदिया एवं अध्यक्ष वरिष्ट कांग्रेस नेता राजीव अरोड़ा ने की ! अंत में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के सचिव प्रथ्वीसिंह रतनु ने आभार ज्ञापित किया! बड़ी संख्यां में काव्य रसिकों ने अस राजस्थानी कवि सम्मलेन का लुफ्त लिया|
प्रस्तुति - किशोर पारीक "किशोर"
majo aa gayo saa
जवाब देंहटाएंBETIO KI POOJAS HONI HI CHAHIYE..
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