किशोर पारीक "किशोर"
किशोर पारीक "किशोर" की कविताओं के ब्लोग में आपका स्वागत है।
किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।
बुधवार, जनवरी 12, 2011
पतंगें
उडती हुई दो पतंगें आपस में उलझ पड़ी गुथम गुत्था ! दोनों ही कट कर एक छत पर जा पड़ी ! नीली नें लाल से पुछा ! क्या मिला मुझे काट कर ? लाल वाली बोली मैं कब तुमसे लड़ना चाहती थी पर मेरी डोर पर मेरा बस ही कहाँ था ! हाँ सखी पतंगें सिर्फ उड़ सकती पर उनकी डोर किसी और के हाथ होती है जो उन्हें लडाता है काटता है और फिर लूट भी लेता है ! हाँ सखी हमारी भी हालत भारत की जनता की तरह ही है जिसकी डोर जिन नेताओं के हाथ में है वही उन्हें लड़ाते कटाते हैं और लूट भी लेते है
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