हल्की सी मुस्कान बहुत है,
मुझ पर यह एहसान बहुत है
सुनता रहा अदीबों से मैं,
मिला मान का पान बहुत है
अधिक भार का क्या करना है
जीने को समान बहुत है
बैर पड़ोसी से रखने को
चिनो पाकिस्तान बहुत है
भरने तेरा पेट चिदम्बर
जन की सस्ती जान बहुत है
सड़ने को सरकार बचाती
गोदानो मैं धान बहुत है
कविताई कुछ की किशोर ने
जितनी चली दुकान बहुत है
किशोर पारीक "किशोर"
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
जवाब देंहटाएंसड़ने को सरकार बचाती
जवाब देंहटाएंगोदानो मैं धान बहुत है
बहुत सटीक व्यंग..बहुत खूब कहा है...
Vyangg aur aabhar ka mael acha hai..achi kavita
जवाब देंहटाएंVyangg aur aabhar ka gajab ka mael...achi kavita
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