किशोर पारीक "किशोर"
किशोर पारीक "किशोर" की कविताओं के ब्लोग में आपका स्वागत है।
किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।
शुक्रवार, जुलाई 17, 2009
बिहारीशरण पारीक महाकवि बिहारी पुरस्कार से सम्मानित
पारीक महाकवि बिहारी पुरस्कार से सम्मानित
जयपुर, : सूचना एवं जनसंपर्क निदेशक डॉ. अमर सिंह राठौड़ की अध्यक्षता एवं शुक्र संप्रदाय पीठाधीश्वर अलबेली माधुरीशरणजी महाराज, न्यायमूर्ति कविवर शिव कुमार शर्मा के वरिष्ठ आतिथ्य में बृहस्पतिवार को स्थानीय पिंकसिटी प्रेस क्लब में मित्र परिषद जयपुर द्वारा प्रवर्तित कविवर बिहारी शरण पारीक अमृतमहोत्सव एवं महाकवि बिहारी पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में कविवर बिहारी शरण पारीक को महाकवि बिहारी पुरस्कार से कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सूचना एवं जनसंपर्क निदेशक डॉ. अमर सिंह राठौड़ ने स्मृति चिह्न प्रदान किया। इस मौके पर न्यायमूर्ति कविवर शिवकुमार शर्मा ने उन्हें साफा पहनाया तथा विशिष्ट अतिथि शुक सम्प्रदाय पीठाधीश्वर अलबेली माधुरी शरण महाराज द्वारा शाल ओढ़ाकर तथा अमृत महोत्सव समिति के अध्यक्ष बुद्धिप्रकाश पारीक ने श्रीफल भेंट कर और मित्र परिषद के अध्यक्ष कल्याण सिंह राजावत ने पुरस्कार राशि देकर सम्मानित किया। प्रशस्ति वाचन मित्र परिषद के सचिव डॉ. रमाशंकर शर्मा द्वारा किया गया। इससे पूर्व अतिथियों द्वारा मा सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलित कर माल्यार्पण किया। कार्यक्रम में बृजभाषा अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल प्रसाद मुद्गल ने सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की। इस अवसर पर कदंब साहित्य शोध संस्थान, कामा के सचिव विठ्ठल पारीक ने बिहारीशरण पारीक को बृज भाषा के काव्यशिल्पि की संज्ञा दी वहीं ओज एवं वीर रस के कवि उमेश उत्साही ने कविवर बिहारीशरण पारीक की कविताओं की महत्ता का गुणगान किया।
गुरुवार, जुलाई 16, 2009
जयपुर के साहित्य शिल्पि
साहित्य और कला की दृष्टि पांडित्य और शिल्प की दृष्टि से अन्तपुरों को रति और काव्य-रीति की दृष्टि से- उदारचेता और दानी राजाओं की दृष्टि से- कलाकारों और भक्तों की दृष्टि से जिस नगरी ने भारतवर्ष में अपना अन्यतम स्थान बनाया उसे सवाई जयसिंह, जयपुर नरेश न बसाया था। ज्योतिष और, कला-कोविदो, पंडितों, गुणीजनों से इस प्रकार शोभा अभिमण्डित किया था कि जयपुर ‘ द्वितीय काशी’ के नाम से विख्यात हो गया। एक समय था जब पांडित्य और शास्त्रार्थ, प्रस्तुति और पुष्टि, खण्डन और मण्डन, काव्य और शिल्प जैसे विषयों पर राजा से लेकर साधारण प्रजाजनों तक गम्भीर चिन्तन को आयाम दिया जाता था।
मुग़ल साम्राज जब अपने वैभव के चरम शिखर पर था और जबसे उसने पतन की और प्रयाण आरंभ किया दानों ही स्थितियों में जयपुर आमेर के कच्छवाह नरेशों ने कवियों, कलाकारों, गुणीजनों को अपने यहां राज्याश्रय दिया । उनके नाज नखरे उठाये और लेखनी के कारीगरों से अमर हो उठे। जिनकी पार्थिव देहयष्टि चित्रों से रक्षित रही या कवलित हुई पर ‘ बस कहिबे की बातें रह जायेगी-1’ और ये बातें आज भी उनके आश्रित कवियों के कविकर्म में सुरक्षित हैं।
वैसे तो सम्पूर्ण राजस्थान के राजा ही परम उदार और कवियों गुणियों का आदर करने वाले हुए हैं, परन्तु जयपुर को राजवंश इस दृष्टि से बहुत अग्रणी रहा हैं।
महाराजा पृथ्वीराज, महाराजा साँगा के समकालीन और नाथ मतानुयायी थे। इनके शासनकाल में श्रीकृष्ण दास ’पयहारी’ वैष्णव सम्प्रदाय के प्रसिद्ध कवि तथा संत हुए हैं। इनका उल्लेख ‘अष्टछाप’ और उनके शिष्य ‘भक्तमाल’ के रचयिता नाभादास प्रसिद्ध संत कवियों में गिने जाते हैं।
महाराजा मानसिंह आमेर राज्य तथा राजवंश को अखिल भारतीय महत्व प्रदान करने वाल, कुशवाह कुल भास्कर, वीर शिरोमणि, महाराजा मान साहित्य प्रेमी, रसज्ञ तथा गुणग्राहक थे। उनकी वीरता के लिये ये पक्तिंयां प्रसिद्ध हैं ।
जननी जणे तो ऐसा जण, जे डो़ मार मरद्ध, समंदर खाडो़ पाखलियो- काबुल घाती हद्द।
और कविगण पर प्रसन्न होने वाले उस दानी महीप ने कवि हरनाथ की इस रचना पर एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया था ।
बलि बोई कीरति-लता, कर्ण करी द्वै पात। सींची मान महीप ने, जब देखी कुम्हिलात ।।
उनके बारे में यह कथ्य भी बहुत प्रसिद्ध हैं कि किसी कवि को एक बनिये ने एक हजार रुपये के लिये बहुत तंग कर लिया था आखिर कवि ने अपनी काव्य-हुण्डी महाराज मान को ही लिख भेजी। उसकी अंतिम पक्तिंयां इस प्रकार थी-
हुण्डी एक तुम पर कीन्हीं हैं हजार की सो, कविन को राखे मान साह जोग देनी हैं।। पहुँचे परिमान भानुवंश के सुजान मान, रोक गिन देनी जस लेखे लिख लेनी हैं।। उस काव्य-प्रेमी राजा ने ‘हुण्डी’ के रुपये तुरन्त बनिये को भिजवा दिये और कवि को समुचित आदर के साथ लिख भेजा-
इतै हम महाराज हैं उतै आप कविराज, हुण्डी लिखि हजार की, नैकु न आई लाज।।
वे नरेश अनेक भाषाओं, यथा संस्कृत, प्राकृत, फारसी
मुग़ल साम्राज जब अपने वैभव के चरम शिखर पर था और जबसे उसने पतन की और प्रयाण आरंभ किया दानों ही स्थितियों में जयपुर आमेर के कच्छवाह नरेशों ने कवियों, कलाकारों, गुणीजनों को अपने यहां राज्याश्रय दिया । उनके नाज नखरे उठाये और लेखनी के कारीगरों से अमर हो उठे। जिनकी पार्थिव देहयष्टि चित्रों से रक्षित रही या कवलित हुई पर ‘ बस कहिबे की बातें रह जायेगी-1’ और ये बातें आज भी उनके आश्रित कवियों के कविकर्म में सुरक्षित हैं।
वैसे तो सम्पूर्ण राजस्थान के राजा ही परम उदार और कवियों गुणियों का आदर करने वाले हुए हैं, परन्तु जयपुर को राजवंश इस दृष्टि से बहुत अग्रणी रहा हैं।
महाराजा पृथ्वीराज, महाराजा साँगा के समकालीन और नाथ मतानुयायी थे। इनके शासनकाल में श्रीकृष्ण दास ’पयहारी’ वैष्णव सम्प्रदाय के प्रसिद्ध कवि तथा संत हुए हैं। इनका उल्लेख ‘अष्टछाप’ और उनके शिष्य ‘भक्तमाल’ के रचयिता नाभादास प्रसिद्ध संत कवियों में गिने जाते हैं।
महाराजा मानसिंह आमेर राज्य तथा राजवंश को अखिल भारतीय महत्व प्रदान करने वाल, कुशवाह कुल भास्कर, वीर शिरोमणि, महाराजा मान साहित्य प्रेमी, रसज्ञ तथा गुणग्राहक थे। उनकी वीरता के लिये ये पक्तिंयां प्रसिद्ध हैं ।
जननी जणे तो ऐसा जण, जे डो़ मार मरद्ध, समंदर खाडो़ पाखलियो- काबुल घाती हद्द।
और कविगण पर प्रसन्न होने वाले उस दानी महीप ने कवि हरनाथ की इस रचना पर एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया था ।
बलि बोई कीरति-लता, कर्ण करी द्वै पात। सींची मान महीप ने, जब देखी कुम्हिलात ।।
उनके बारे में यह कथ्य भी बहुत प्रसिद्ध हैं कि किसी कवि को एक बनिये ने एक हजार रुपये के लिये बहुत तंग कर लिया था आखिर कवि ने अपनी काव्य-हुण्डी महाराज मान को ही लिख भेजी। उसकी अंतिम पक्तिंयां इस प्रकार थी-
हुण्डी एक तुम पर कीन्हीं हैं हजार की सो, कविन को राखे मान साह जोग देनी हैं।। पहुँचे परिमान भानुवंश के सुजान मान, रोक गिन देनी जस लेखे लिख लेनी हैं।। उस काव्य-प्रेमी राजा ने ‘हुण्डी’ के रुपये तुरन्त बनिये को भिजवा दिये और कवि को समुचित आदर के साथ लिख भेजा-
इतै हम महाराज हैं उतै आप कविराज, हुण्डी लिखि हजार की, नैकु न आई लाज।।
वे नरेश अनेक भाषाओं, यथा संस्कृत, प्राकृत, फारसी
चिकित्सालयों पर व्यंग्य ग़जल
टूटी दाईं टाँग लगादी, रॉड भले ने बॉंई में
किसको फुरसत सभी लगे हैं, अंधी मुफ्त कमाई में
पेट दर्द था कल से उसका, दिखलाने भीखू आया
पता लगा गुर्दा दे आया, आते वक्त विदाई में
चीर पेट छोडी हैं अन्दर, कैंची पट्टी सर्जन ने
दोष ढूँढ़ते आप भला क्यों, मिस्टर मुन्ना भाई में
रहे सिसकते दुर्घटना में, घायल उनको रोते हैं
नैन लड़ाते खड़े चिकित्सक, सिस्टर से तनहाई में
बीमारी गहरी या हल्की, अस्पताल में मत जाना
भले कूदना पड़े तुम्हें तो, कुए बावड़ी खाई में
मन्दी का भी दौर न होगा, इन दोनों के धन्धो में
नजर न आता मुझको अन्तर, सर्जन और कसाई में
लालच देकर खून निकाला, मासूमों को बहलाकर
रक्त पिपासु नरपिचास ये, डूबे सब बेहआई में
समझा जिनको जीवन रक्षक, भक्षक वे प्राणों के निकले
वो किशोर करते अयासी, नकली लिखि दवाई में
किसको फुरसत सभी लगे हैं, अंधी मुफ्त कमाई में
पेट दर्द था कल से उसका, दिखलाने भीखू आया
पता लगा गुर्दा दे आया, आते वक्त विदाई में
चीर पेट छोडी हैं अन्दर, कैंची पट्टी सर्जन ने
दोष ढूँढ़ते आप भला क्यों, मिस्टर मुन्ना भाई में
रहे सिसकते दुर्घटना में, घायल उनको रोते हैं
नैन लड़ाते खड़े चिकित्सक, सिस्टर से तनहाई में
बीमारी गहरी या हल्की, अस्पताल में मत जाना
भले कूदना पड़े तुम्हें तो, कुए बावड़ी खाई में
मन्दी का भी दौर न होगा, इन दोनों के धन्धो में
नजर न आता मुझको अन्तर, सर्जन और कसाई में
लालच देकर खून निकाला, मासूमों को बहलाकर
रक्त पिपासु नरपिचास ये, डूबे सब बेहआई में
समझा जिनको जीवन रक्षक, भक्षक वे प्राणों के निकले
वो किशोर करते अयासी, नकली लिखि दवाई में
समलेंगिकता पर गीत
समलेंगिकता पर गीतरिश्तों के पावन बन्धन में किसने दाग लगाया देखो,
रिश्तों के पावन बंधन , में किसने दाग लगाया देखो
मर्यादा की फुलवारी में, किसने खार उगाया देखो
आग लगी थी जगंल जगंल, वो बस्ती में धुस आयी है
बरबादी की लें सोगातें, दानवता भी संगलाई है
कीचड में अवगाहन करके, गंगाजल ठुकराया देखो
रिश्तों के पावन बन्धन, में किसने दाग लगाया देखो
पशुओं में भी जो ना देखा, वह इंसानो ने कर डाला
कुदरत की अनदेखी करके, आपस में डाली है माला
शर्म हया को निर्वासित कर, किसने जाल बिछाया देखो
रिश्तों के पावन बन्धन, में किसने दाग लगाया देखो
इतिहासों को चिन्हीत करके, अपवादों को क्यों रोते हो
नादानों नवपीढी में तुम, बिष की बेलें क्यों बोते हो
मजहब को अपमानित करके, किसने पाप रचाया देखो
रिश्तों के पावन बन्धन, में किसने दाग लगाया देखो
विधि की मोहर लगाई उस पर, विकृत मन का पागलपन है
गलियों, चौराहों, चौबारों, सब पर इनका नंगापन है
नैतिकता को अपमानित कर, क्या षड्यन्त्र रचाया देखो
रिश्तों के पावन बंधन , में किसने दाग लगाया देखो
किशोर पारीक 'किशोर'
रिश्तों के पावन बंधन , में किसने दाग लगाया देखो
मर्यादा की फुलवारी में, किसने खार उगाया देखो
आग लगी थी जगंल जगंल, वो बस्ती में धुस आयी है
बरबादी की लें सोगातें, दानवता भी संगलाई है
कीचड में अवगाहन करके, गंगाजल ठुकराया देखो
रिश्तों के पावन बन्धन, में किसने दाग लगाया देखो
पशुओं में भी जो ना देखा, वह इंसानो ने कर डाला
कुदरत की अनदेखी करके, आपस में डाली है माला
शर्म हया को निर्वासित कर, किसने जाल बिछाया देखो
रिश्तों के पावन बन्धन, में किसने दाग लगाया देखो
इतिहासों को चिन्हीत करके, अपवादों को क्यों रोते हो
नादानों नवपीढी में तुम, बिष की बेलें क्यों बोते हो
मजहब को अपमानित करके, किसने पाप रचाया देखो
रिश्तों के पावन बन्धन, में किसने दाग लगाया देखो
विधि की मोहर लगाई उस पर, विकृत मन का पागलपन है
गलियों, चौराहों, चौबारों, सब पर इनका नंगापन है
नैतिकता को अपमानित कर, क्या षड्यन्त्र रचाया देखो
रिश्तों के पावन बंधन , में किसने दाग लगाया देखो
किशोर पारीक 'किशोर'
सोमवार, जुलाई 06, 2009
जून माह की काव्यगोष्ठी
मौन शंकर मौन चंण्डी देश में, हो रहे हावी शिखंडी देश में
काव्यालोक की मासिक काव्यगोष्ठी में चली कविता की अविराम
वजीर सदन आदर्श नगर, जयपुर में आयोजित काव्यालोक जयपुर की मासिक काव्यगोष्ठी में ढूढाडी के वरिष्ठ गीतकार बुद्विप्रकाश पारीक की अध्यक्षता में गुलाबी नगर के कवियों, गीतकारों ने देर रात तकअपने गीतों गजलों एवं दोहों की त्रिवेणी से जमकर रस बरसाया। संघर्षों के सुधी शायर एवं पूर्व मंत्री जोगेश्वर गर्ग के अशआरों ने खूब दाद पायी 'करें है याद भी गर तो सताने के लिये कोई, हमारा नाम लिखता है मिटाने के लिये कोई, तेरी महफिल से उठ कर आ गया उम्मीद ये लेकर, पीछे आ रहा होगा, मनाने के लिये कोई। और व्यवस्थाओं पर चोट करते हुए जोगेश्वर ने इस अंदाज में कहा 'मौन शंकर मौन चंण्डी देश में, हो रहे हावी शिखंडी देश में, है टिका आकाश इनके शिश पर, सोचते हैं कुछ घंमडी देश में। रागात्मकता के कवि आर सी शर्मा गोपाल ने ईमान धरम की अहमियत पर जोर डालते हुवे अपने दोहों में कहा कि 'सब कुछ है जिनके लिये धरम और ईमान, जीवन उनका कार्तिक सांसे है रमजान। और मंहगाई पर ' आम दिनों के खर्च ही चलना है दुश्वार, मुफलिस की तो मौत है, आये दिन त्योंहार। काव्यालोक के अध्यक्ष नन्दलाल सचदेव ने हाल ही दिवंगत वाचिक पंरम्परा के चार कवियों को श्रद्वाजंली अर्पित करते हुवे गीत पढा ' माना हो जायेगे इक दिन मंच से किरदार गुम, जिंदगी से हो ना पायेंगे कभी आधार गुम, रास्ते खेले बहुत आमद बढी रफतार भी, सर से होते जा रहे है, पेड छायादार गुम।
गोष्ठी का संचालन करते हुवे कवि किशोर पारीक 'किशोर' अपनी व्यंग्य रचना में फादर्स डे पर पीढीयों के दंश को ढूढाडी गज़ल ' रिश्ता होगा डेड पिताजी थे छो कोडै, बदल्यो ऐ टू जेड पिताजी थे छौ कोडै' में खुब वाह वाही लूटी। कलम के अनूठे चितेरे कवि मुकुट सक्सेना ने ' उसने पीछे से मेरी आखें हथेली से ढक्ी, इस तरह पर्दे रही, बेपर्दगी अच्छी लगी' से सब का ध्यान आकर्षित किया । कवि वैघ भगवान सहाय पारीक ने पाकिस्तान एवं अमेरिका की दोस्ती पर व्यंग्य गीत पढा ' पाला आज सपोला कल होगा बिकराल सपेरे विषधर मत पाल'
काव्यालोक की मासिक काव्यगोष्ठी में चली कविता की अविराम
वजीर सदन आदर्श नगर, जयपुर में आयोजित काव्यालोक जयपुर की मासिक काव्यगोष्ठी में ढूढाडी के वरिष्ठ गीतकार बुद्विप्रकाश पारीक की अध्यक्षता में गुलाबी नगर के कवियों, गीतकारों ने देर रात तकअपने गीतों गजलों एवं दोहों की त्रिवेणी से जमकर रस बरसाया। संघर्षों के सुधी शायर एवं पूर्व मंत्री जोगेश्वर गर्ग के अशआरों ने खूब दाद पायी 'करें है याद भी गर तो सताने के लिये कोई, हमारा नाम लिखता है मिटाने के लिये कोई, तेरी महफिल से उठ कर आ गया उम्मीद ये लेकर, पीछे आ रहा होगा, मनाने के लिये कोई। और व्यवस्थाओं पर चोट करते हुए जोगेश्वर ने इस अंदाज में कहा 'मौन शंकर मौन चंण्डी देश में, हो रहे हावी शिखंडी देश में, है टिका आकाश इनके शिश पर, सोचते हैं कुछ घंमडी देश में। रागात्मकता के कवि आर सी शर्मा गोपाल ने ईमान धरम की अहमियत पर जोर डालते हुवे अपने दोहों में कहा कि 'सब कुछ है जिनके लिये धरम और ईमान, जीवन उनका कार्तिक सांसे है रमजान। और मंहगाई पर ' आम दिनों के खर्च ही चलना है दुश्वार, मुफलिस की तो मौत है, आये दिन त्योंहार। काव्यालोक के अध्यक्ष नन्दलाल सचदेव ने हाल ही दिवंगत वाचिक पंरम्परा के चार कवियों को श्रद्वाजंली अर्पित करते हुवे गीत पढा ' माना हो जायेगे इक दिन मंच से किरदार गुम, जिंदगी से हो ना पायेंगे कभी आधार गुम, रास्ते खेले बहुत आमद बढी रफतार भी, सर से होते जा रहे है, पेड छायादार गुम।
गोष्ठी का संचालन करते हुवे कवि किशोर पारीक 'किशोर' अपनी व्यंग्य रचना में फादर्स डे पर पीढीयों के दंश को ढूढाडी गज़ल ' रिश्ता होगा डेड पिताजी थे छो कोडै, बदल्यो ऐ टू जेड पिताजी थे छौ कोडै' में खुब वाह वाही लूटी। कलम के अनूठे चितेरे कवि मुकुट सक्सेना ने ' उसने पीछे से मेरी आखें हथेली से ढक्ी, इस तरह पर्दे रही, बेपर्दगी अच्छी लगी' से सब का ध्यान आकर्षित किया । कवि वैघ भगवान सहाय पारीक ने पाकिस्तान एवं अमेरिका की दोस्ती पर व्यंग्य गीत पढा ' पाला आज सपोला कल होगा बिकराल सपेरे विषधर मत पाल'
सदाकन्द पसंन्द शायर रजा शैदाई ने हुस्न के बदलते मिजाज मिजाज पर इशारा किया ' कोई काफर जब़ी शरमा रहा है, सितारों का पसीना आ रहा है' इलाही क्या जमाना आ रहा है, मिजाजे हुस्न बदला जा रहा है। शायर मनोज मित्तल केफ ने पूरी कायनात में इंसान की स्थिति पर अपने कता पढे ' कहूं किससे हाल ए हयात मैं, गमें जिन्दगी से सरहक हूं, जो फलक की आंख से गिर गया, मैं जमीं पर वही अश्क हूं। टोंक के गीतकार गोविन्द भारद्वाज ने अपने दोंहों में शहरों की और पलायन करते लोगों को वहां की बेहाली से सावचेती का बात अपने दोंहो में कही ' गांव छोडकर आ गये, क्यों शहरों की और, पता नहीं तुमको यहॉं कितने आदमखौर,। सिद्वहस्त वरिष्ठ कवि बिहारीशरण पारीक ने अपनी ब़जभाषा रचना ' लल्ली है कि लल्ला है ' को रोचक अदांज में पेश किया। कोष्ठी में गोपीनाथ गोपेश, चन्द्र पकाश चन्दर, गोविन्द मिश्र, सोहन प्रकाश सोहन, विशन लाल अनुज, चम्पालाल चौरडिया, तब्बसुम रहमानी, नाथूलाल महावर, अज्ज्वला अरोडा, गगन मालपाणी , सरूर खलिकी, ईनाम शरर, अजीज अयूब्ी, दर्द अकवराबादी ने भी काव्य पाठ किया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शायर एवं पूर्व मंत्री जोगेश्वर गर्ग थे। अन्त में काव्यालोक के अध्यक्ष नन्दलाल सचदेव ने आभार ज्ञापित किया।
बारिश के दोहे
हे ईश्वर किस बात की, अब करता है दैर
कब बरसेगी बादली, कब से धैर धुमेर ।।
कब से रटती मोरनी, पीहू पीहू दिन रात
साजन दे उपहार में, आँसू की सौगा़त।।
बजट बरस कर रह गया, प्यासा फिर भी गांव
वाह मुखर्जी खूब दी, तुमने हमको छांव ।।
कब बरसेगी बादली, कब से धैर धुमेर ।।
कब से रटती मोरनी, पीहू पीहू दिन रात
साजन दे उपहार में, आँसू की सौगा़त।।
बजट बरस कर रह गया, प्यासा फिर भी गांव
वाह मुखर्जी खूब दी, तुमने हमको छांव ।।
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