धरती पर ही सीखा उसने, ढाई आखर गाना था
ढूढ़ रहा हूँ अजनबियों में , कोइ हो मेरा अपना
जिसको मैंने समझा अपना, वो सचमुच बेगाना था
कल से लेकर कल तक सारा, पल पल बीता बातों में
विश्वासों का घट था रीता, सावन की बरसातों में
इतराई राहे पगडंडी, हंसी ठिठोली कर कर के
प्यासी वधुए वापस लोटी, पनघट से जज्बातों में
सारा जग ही घर अपना है, सबको पाठ पढाया है
विश्व गुरु बनकर दुनिया को सच्चा ज्ञान कराया है उस भारत में जांत-पांत की,आरक्षण, जनगणना हो हे राम हमारे भारत को ये, कैसा दिन दिखलाया है
किशोर पारीक "किशोर"