दो मोसम है और भी, सूखा बाढ़ अपात
केवल ऋतुएँ हैं नहीं, सर्द , गर्म, बरसात
ये जब भी आते , अफसर हैं हर्षाते
संसद तो इनके लिए, केवल एक दूकान
वन्दे मातरम की जगह, धन दे मातरम गान
जनता की दुश्वारी, चाहिए वेंतन भारी
गंगां कोमानवेल्थ की, धोये सबने हाथ
बचों खुचों को दे रही, यमुनाजी सौगात
भर गए इनके गल्ले, हो गयी बल्ले बल्ले
स्टेडियम बन रहे, अरबों में तैयार
आफ्टर कोमानवेल्थ के , क्या होगा भरतार
लगेंगे फिर नहीं मेले, गधों के बने तबेले
किशोर पारीक "किशोर"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें