बात पते की, यही हुजूर
खुराफात से, रहना दूर
दिया खुदा ने उसे कबूल
उसको था, ये ही मंजूर
नहीं निगाह मैं, उसके फर्क
राजा हो, या हो मजदूर
जिन्हें हुस्न पर, होता नाज़
वो अक्सर होते मगरूर
खोएगा जो वक्त फिजूल
सपने होंगे, चकनाचूर
चलते ही रहना, दिन-रात
मंजिल अपनी, कोसों दूर
सबर सुकूं, की रोटी चार
बरसाती चेहरे पर नूर
बोई फसल, वही तू काट
जीवन का ये ही दस्तूर
दुनिया फानी, समझ "किशोर"
सब कुछ होना है काफूर
किशोर पारीक " किशोर"
achi kavita he
जवाब देंहटाएंman bh gai
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
ग़ज़ल कही क्या खूब "किशोर"
जवाब देंहटाएंतारीफों को हम मजबूर