आज की कविता
कोई रेड, कोई मेड, कविता से करे छेड़
कोई भोंपू, कोई सेड नाम धर आये है,
कविता के राष्ट्रीय मंच,छडे दोड़ दोड़
जोड़ जोड़ चुटीले से, चुटकुले सुनाये है
थाल अश्लीलता का, मॉल ड़ाल फुड़ता का
स्वाद भरे शब्दों के, भूरते बनाये है
जोकर बने है पर, जोक में भी दम नहीं
सुकवि बेचारे शीश झुका सकुचाये है
जब से ये ठेकेदार, मंच को सजाने लगे
साहित्य पे स्यामत के मेघ मंडराए है
तालियाँ बटोरते है, गलियां सुनते खूब
दो दो अर्थ वाले संवाद भी जुटाए है
हरे हरे राम राम करे सभी साधू कवि
इनने तो हरे हरे नोट भी कमाए है
कविता में केंचिया, कटार सी चलाते देख
केशव कबीर ने तो मुंह लटकाए है
कीजिये प्रहार तो, समाज की विसंगति पे
आपका प्रहार सत्य, रोतों को हंसायेगा
गुदगुदी भी करेगा,आनंद देगा व्याज रूप
दम चाहे नहीं मिले, दाद तो कमाएगा
श्रोता सदहोता निर्दोष और ईमानदार
जैसा भी परोस दोगे, वही तो वह खायेगा
कविभंड नहीं है, प्रचंड होता काव्य ओज
किया जो पाखंड कविमंडली लजाएगा
किशोर पारीक "किशोर"
sahi kaha...kavya ki madhurta kam ho gayi hai...nav kaviyon ko milne wala protsahan bhi kam ho gaya hai...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
कविभंड नहीं है, प्रचंड होता काव्य ओज
जवाब देंहटाएंकिया जो पाखंड कविमंडली लजाएगा
-सही है.
udan tastari ji se sehmat hoon
जवाब देंहटाएंSahi kha Kishor jii..ab kavitwa aur kavita ka mole gir gaya hai..
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