दुआ देते हाथ ही, बायस बने आघात का
कुछ भरोसा ही नहीं है, आज के हालत का
बगवां गुलशन में रखे, जब कभी अपने कदम
ध्यान रखना फूल के, तितली के भी जजबात का
पिट यहाँ सकते मुसाहिब, प्यादियाँ फर्जी बने
राजनीती खेल है अब, सिर्फ किस्तो मात का
ढूँढते हो शरबती, आँखों में हरदम मस्तियाँ
मोल वे क्या कर सकेंगे, अश्क के जजबात का
खुशनुमा दोपहर गुजरी, शाम भी हो खुशनुमा
होश कारलो गफिलों, आगे अँधेरी रात का
किशोर पारीक" किशोर"
किशोर पारीक "किशोर"
किशोर पारीक "किशोर" की कविताओं के ब्लोग में आपका स्वागत है।
किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।
बुधवार, अप्रैल 07, 2010
दुल्हे बने कंडेक्टर
फेरे में दुल्हन को
देख दुल्हे बने
कंडेक्टर
पर थोड़ी और
सरकजा
एक सवारी
और आयेगी
किशोर पारीक " किशोर"
देख दुल्हे बने
कंडेक्टर
उसने अपनी डयूटी
के अंदाज़ में ही कहातू तो मन्ने
घणी ही भाएगीपर थोड़ी और
सरकजा
एक सवारी
और आयेगी
किशोर पारीक " किशोर"
पॉपुलेशन नियंत्रण
व्यंग: इच्छाधारी बाबा
से कहा
हम सिर्फ फिल्मों और
कहानियों में रह गए
अरे बाबाजी
हमारे नाम पर
मजे ले गए
किशोर पारीक " किशोर"
हँसते हँसते मरो
बिजली के करंट से
मरामेरे गांव का एक
मसखरा
उसकी लाश, जब
अर्थी पर
सजाई गयी
उसकी मुख मुद्रा
हंसती हुई पाई गयी!
यमराज ने
ऐंठ कर प्रश्न दागे
अबे ओ अभागे
ऐसा क्या ?
मरते हुए भी
हंसी उलीच रहा है
मसखरे ने
मुस्करा कर कहा
यमराज जी मैंने सोचा
फोटोग्राफर
मेरी फोटो खिंच रहा है !
किशोर पारीक " किशोर"
पापा बनाम डेडी
मुझको तू पापा कहती थी
अब क्यों कहती "डेड"इस परिवर्तन पर मेरा लाडो
घर अपना है,
बाग सरीखा
डेडी तुम हो माली
तुमको गर बोलूं पापा
तो पूछती होंटों
की लाली ! किशोर पारीक " किशोर"
नेता सांप
नेता सांप
सोने पहुंचे वर्माजी,
बिस्तर में था इक नाग
बोले वर्मा डस नेता को,
की थेली
उससे ही भरवाई है !
किशोर पारीक "किशोर"
सोने पहुंचे वर्माजी,
बिस्तर में था इक नाग
बोले वर्मा डस नेता को,
बोला सांप छोड़िये बातें
नेता अपना भाई है
मेरे अन्दर की विष की थेली
उससे ही भरवाई है !
किशोर पारीक "किशोर"
कबूतर के माध्यम से मिसकाल
कबूतर के माध्यम से मिसकाल
एक प्रेमी
जोड़ा
जोड़ा
एक दिन प्रेमिका के
मिलने पर पूछा
कारण
प्रेमी ने कहा हे
मेरी चंपारण
ये ही तो मेरा कमाल था
कपोत के साथ
ये मेरा मिसकाल था !
किशोर पारीक " किशोर"
एक प्रेमी
जोड़ा
कबूतर के माध्यम से
संदेशो का सिलसिला जोड़ा
एक दिन प्रेमिका के
उदासी की अमावस्या
छाई थी
कबूतर तो आया था
एस एम् एस
नहीं लाया था मिलने पर पूछा
कारण
प्रेमी ने कहा हे
मेरी चंपारण
ये ही तो मेरा कमाल था
कपोत के साथ
ये मेरा मिसकाल था !
किशोर पारीक " किशोर"
मंगलवार, अप्रैल 06, 2010
सरकारी अस्पताल
सरकारी अस्पताल
काव्य की कक्षा में
गुरूजी ने प्रश्न दागा
बताईये !
मुस्कराहट मारी
बोला सर !
लगता है
जहाँ
इलाज चल रहा है,
वह अस्पताल है
सरकारी !
किशोर पारीक" किशोर"
काव्य की कक्षा में
गुरूजी ने प्रश्न दागा
बताईये !
रोग बढता ही गया
समझाइये
एक होशियार
चेले के उत्तर पर
पूरी कक्षा ने चेले के उत्तर पर
मुस्कराहट मारी
बोला सर !
लगता है
जहाँ
इलाज चल रहा है,
वह अस्पताल है
सरकारी !
किशोर पारीक" किशोर"
लोन लेकर करो विवाह
लोन लेकर करो विवाह
बैंक से लिया लोन
खरीदी
वापस ले गए
बैंक से लिया लोन
खरीदी
एक कार
नहीं चुका सका तो,वापस ले गए
यार
काश
ऐसा होता पता
डरता
शादी भी लोन लेकर ही
करता
किशोर पारीक " किशोर"
रविवार, अप्रैल 04, 2010
स्वाभिमान सो गया है, तेज कहीं खो गया है
स्वाभिमान सो गया है, तेज कहीं खो गया है
सिंह को सियार अब रोज धमकाएंगे
आँख मूँद भीष्म बने, देश को चलने वाले
माँ भारती की लाज को, ये कैसे बचा पाएंगे
दुश्मनों की आँख रही, देश के ललाट पर
प्रेम के तराने फिर भी गाते चले जायेंगें
संसद पे हमलों से, जूझेंगें जवान जब
कुर्सियों के नीचे जाकर, ये छुप जायेंगें
किशोर पारीक" किशोर"
सिंह को सियार अब रोज धमकाएंगे
आँख मूँद भीष्म बने, देश को चलने वाले
माँ भारती की लाज को, ये कैसे बचा पाएंगे
दुश्मनों की आँख रही, देश के ललाट पर
प्रेम के तराने फिर भी गाते चले जायेंगें
संसद पे हमलों से, जूझेंगें जवान जब
कुर्सियों के नीचे जाकर, ये छुप जायेंगें
किशोर पारीक" किशोर"
शनिवार, अप्रैल 03, 2010
बात पते की, यही हुजूर
बात पते की, यही हुजूर
खुराफात से, रहना दूर
दिया खुदा ने उसे कबूल
उसको था, ये ही मंजूर
नहीं निगाह मैं, उसके फर्क
राजा हो, या हो मजदूर
जिन्हें हुस्न पर, होता नाज़
वो अक्सर होते मगरूर
खोएगा जो वक्त फिजूल
सपने होंगे, चकनाचूर
चलते ही रहना, दिन-रात
मंजिल अपनी, कोसों दूर
सबर सुकूं, की रोटी चार
बरसाती चेहरे पर नूर
बोई फसल, वही तू काट
जीवन का ये ही दस्तूर
दुनिया फानी, समझ "किशोर"
सब कुछ होना है काफूर
किशोर पारीक " किशोर"
खुराफात से, रहना दूर
दिया खुदा ने उसे कबूल
उसको था, ये ही मंजूर
नहीं निगाह मैं, उसके फर्क
राजा हो, या हो मजदूर
जिन्हें हुस्न पर, होता नाज़
वो अक्सर होते मगरूर
खोएगा जो वक्त फिजूल
सपने होंगे, चकनाचूर
चलते ही रहना, दिन-रात
मंजिल अपनी, कोसों दूर
सबर सुकूं, की रोटी चार
बरसाती चेहरे पर नूर
बोई फसल, वही तू काट
जीवन का ये ही दस्तूर
दुनिया फानी, समझ "किशोर"
सब कुछ होना है काफूर
किशोर पारीक " किशोर"
में धड़कन के गीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
वंदन मिले ना, चाहे मुझको, चन्दन मिले ना चाहे मुझको
नई सुबह के पन्नो पर, में अपने मन के मीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
बादल चाहे कितना गरजे, सूरज से भी अग्नि बरसे
अपने माँ के अनुपम गुंजन, से में नवनीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
थक कर चाहे सो जाऊंगा, जग कर फिर लिखने आऊँगा करदे सराबोर सब जग को, ममतामय में शीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
मोसम तो आये जायेंगे, मुझको कहाँ हिला पाएंगे अग्नि का जो ताप भुजादे , कागज़ पर में शीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
इस बगिया की आंगन क्यारी, मुझको प्यारी हर फुलवारी
हर रिश्ते में जान फुकदे, ऐसी सुन्दर रीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
ओ चिराग गुल करने वालों, चाहे जितना जोर लगालो
जगतीतल को रोशन करदे, ऐसे उज्वल दीप लिखूंगा में धड़कन के गीत लिखूंगा
सागर जितना में गहरा हूँ, अम्बर जैसा में ठहरा हूँ
वर्तमान को सुरभित करदे, अनुपम वही अतीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
चाहे शब्द कहीं खो जाये, स्वर मेरे चाहे खो जाये
फिघलती पावक पर बैठा, में फिर से नवनीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
वंदन मिले ना, चाहे मुझको, चन्दन मिले ना चाहे मुझको 
में धड़कन के गीत लिखूंगा
किशोर पारीक " किशोर"
कल से पहले, आज की सोच
कल से पहले, आज की सोच
कल से पहले, आज की सोच
भूखा है, अनाज की सोच
उनके पांवों में ना चप्पल
खुद के मत तू, ताज की सोच
मूल बचा, मत ब्याज की सोच
जिस अम्मा ने बख्शी सांसें
हरदम तुझको, देखे यारब
उसके तू अंदाज़ की सोच
किशोर पारीक" किशोर"
कल से पहले, आज की सोच
भूखा है, अनाज की सोच
उनके पांवों में ना चप्पल
खुद के मत तू, ताज की सोच
मूल बचा, मत ब्याज की सोच
जिस अम्मा ने बख्शी सांसें
चुप क्यूँ है, आवाज की सोच
काबा कशी में, क्या रक्खा ?
मन मंदिर के साज़, की सोच हरदम तुझको, देखे यारब
उसके तू अंदाज़ की सोच
किशोर पारीक" किशोर"
जाना पड़े तुझे थाने तो, इज्जत बाहर धरता जा
सुबह शाम तू रोज़ चिलम ले, बड़े साहब की भरता जा
कैसा भी हो संकट प्यारे, उससे पर उतरता जा
बरसों से जो अटके- लटके, झटके से पूरे होंगे
हर पड़ाव पर अहलकार के, हाथ गर्म तू करता जा
आपने झगडे खुद निपताले, कोर्ट कचहरी मत जाना
गीत ग़ज़ल, छंदों की बातें, करना अब तू छोड़ सखे
चुरा लतीफे पढ़ मंचों पर, आपने आप निखरता जा
धोले बहती गंगा में तू, अपने दोनों हाथ "किशोर"
पकड़ी है जो मछली तुने, शनै शनै कुतरता जा
किशोर पारीक" किशोर"
कैसा भी हो संकट प्यारे, उससे पर उतरता जा
बरसों से जो अटके- लटके, झटके से पूरे होंगे
हर पड़ाव पर अहलकार के, हाथ गर्म तू करता जा
आपने झगडे खुद निपताले, कोर्ट कचहरी मत जाना
दल दल मैं तू फसाना चाहे, सुन उपचार बताता हूँ
राजनीती के तहखानों में क़दमों कदम उतरता जागीत ग़ज़ल, छंदों की बातें, करना अब तू छोड़ सखे
चुरा लतीफे पढ़ मंचों पर, आपने आप निखरता जा
धोले बहती गंगा में तू, अपने दोनों हाथ "किशोर"
पकड़ी है जो मछली तुने, शनै शनै कुतरता जा
किशोर पारीक" किशोर"
मेरी माँ
मेरी माँ
ब्रह्मा यद्यपि सृष्टि रचयिता, उससे, बढ़ कर मेरी माँ
बेटे की माँ बन जाने का, गौरव तुमने पाया था
हुई घोषणा थाल बजाते, छत पर छढ़कर मेरी माँ
मैं तो तिर्यक योनी में, घुटनों के बल चलता था
गिरते को हर बार उठती, हाथ पकरकर मेरी माँ
अमृत सा पय पण कराती, आँचल की रख ओट मुझेबड़ा हुआ तो खूब खिलाती, हरदम लड़कर मेरी माँ
किये उपद्रव तोडा फोड़ी,उपालम्ब भी खूब सहे
किन्तु नहीं अभिशापित करती, कभी बिगड़कर मेरी माँ
लगती तुम ममता की सरिता, मंथर गति से जो बहती
कभी बनी पाषाण शिला सम, आगे अड़कर मेरी माँ
तुम मेरी पैगेम्बर जननी, तुम ही पीर ओलिया हो
शत शत शत प्रणाम अर्पित है, चरणों पड़ कर मेरी माँ
किशोर पारीक " किशोर" ग़ज़ल
नैन लड़ाते खड़े चिकित्सक, सिस्टर से तनहाई में
टूटी दांई टांग, लगादी रॉड लगादी भले ने बाँई में
किसको फुरसत सभी लगे है, अंधी मुफ्त कमाई में
मंदी का भी दौर न होगा, इन दोनों के धन्दो में
नज़र न आत मुझको अंतर, सर्जन और कसाई में
पेट दर्द था कलसे उसका, दिखलाने भीखू आया
पता लगा गुर्दा दे आया, आते वक्त विदाई में
चीर पेट छोड़ी है अन्दर, केंची, पट्टी सर्जन ने
दोष ढूंढ़ते आप भला क्यों, मिस्टर मुन्ना भाई में
रहें सिसकते दुर्घटना में, घायल उनको रोते है
नैन लड़ाते खड़े चिकित्सक, सिस्टर से तनहाई में
बीमारी गहरी या हल्की, अस्पताल में मत जाना
भले कूदना पड़े तुम्हे तो, कुए, बावड़ी, खाई में
समझा जिनको जीवन रक्षक, भक्षक प्राणों के निकले
वो "किशोर" करते अय्यासी नकली लिखी दवाई में.
किशोर पारीक "किशोर:
शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010
जन- जन के माँ की पीड़ा का, गायक मैं किशोर हूँ
मुक्तक
सोचता हूँ मैं लिखूं, कुछ चांदनी के रूप पर
मीत के संग प्रीत पर, योवन नहाती धूप पर
भूख नफरत देखकर , आवेश आता है
इसीलिए कविता में, पहले देश आता है
====
ना कोलाहल हूँ मैं यारों, सिसकी ना ही शोर हूँ
दर्द को सहलाने वाली, अँगुलियों की पोर हूँ
शब्द लिखें हैं जितने मैंने , धड़कन की हर स्वांस से
जन- जन के मन की पीड़ा का, गायक मैं किशोर हूँ
किशोर पारीक"किशोर"
सोचता हूँ मैं लिखूं, कुछ चांदनी के रूप पर
मीत के संग प्रीत पर, योवन नहाती धूप पर
भूख नफरत देखकर , आवेश आता है
इसीलिए कविता में, पहले देश आता है
====
ना कोलाहल हूँ मैं यारों, सिसकी ना ही शोर हूँ
दर्द को सहलाने वाली, अँगुलियों की पोर हूँ
शब्द लिखें हैं जितने मैंने , धड़कन की हर स्वांस से
जन- जन के मन की पीड़ा का, गायक मैं किशोर हूँ
किशोर पारीक"किशोर"
सदस्यता लें
संदेश (Atom)