थांका नेना की कटार, म्हाके हिवड़े उतरी आर
चढग्यो प्रीत रो मीठो ज्वार, दुनियां खेवे छे बीमार
होठ पांखडी सी गुलाब की, रस बर्सायाँ जावे
मुळको छो बिज़ली सी चिमके,सगळा गश खाजावे
होगा म्हे कितना लाचार, करल्यो म्हासूं आंख्या चार
थांका नेना की कटार, म्हाके हिवड़े उतरी आर
चढग्यो प्रीत रो मीठो ज्वार, दुनियां खेवे छे बीमार
काची हल्दी सो रंग थांको, कंचन भी हलकों छे
बीच बादल्याँ साँझ सावने, सूरज को पलको छे
लागो रूप का थे कोठ्यार, म्हाने सजनी बीण सिंणगार
थांका नेना की कटार, म्हाके हिवड़े उतरी आर
चढग्यो प्रीत रो मीठो ज्वार, दुनियां खेवे छे बीमार
मीठी बोली मैं ऐयाँ लागे, कोयलडी गीत सुनावे
जाने कोई पथिक प्यास मैं, गंगा जल पा जावे
बिन कागज चिठ्ठी तार, म्हाने दे द्यो थे संचार
थांका नेना की कटार, म्हाके हिवड़े उतरी आर
चढग्यो प्रीत रो मीठो ज्वार, दुनियां खेवे छे बीमार
मैं सागर थे चंचल नंदी, मिलनो बहुत जरूरी
चोखी कोनी थांकी म्हाकी, तन मन की या दूरी
म्हाने करल्यो अंगीकार, थांको माना ला आभार
थांका नेना की कटार, म्हाके हिवड़े उतरी आर
चढग्यो प्रीत रो मीठो ज्वार, दुनियां खेवे छे बीमार