मैं अंश हूं तुम्हारी स्नेहमयी अभिलाशा का
मैं वंश हूं तुम्हारे काव्यालय की आशा का
मैं अभ्रिव्यक्ति हूं तुम्हारी अनकही भाषा की
मैं अनुभूति हूं तुम्हारी हर परिभाषा की
मेरे चित्त पटल पर सब,सतरंगी चित्र तुम्हारे है
बाबू जी तुमरे बिन तो, ये कोरे कागज सारे हैं
मेरी थकन को शक्ति का सागर दिया,
तोतली जुबान को शब्दों का आगर दिया
मेरी गुस्ताखियां माफ करते रहे,
मेर हर अक्षर को, पैराग्राफ करते रहे
मैं अंश हूं तुम्हारी स्नेहमयी अभिलाषा का,
मैं वंश हूं तुम्हारे काव्यालय की आशा का
मैं अभ्रिव्यक्ति हूं तुम्हारी अनकही भाषा की
मैं अनुभूति हूं तुम्हारी हर परिभाषा की
मेरे चित्त पटल पर सब,सतरंगी चित्र तुम्हारे है
बाबू जी तुमरे बिन तो, ये कोरे कागज सारे हैं
मेरी थकन को शक्ति का सागर दिया,
तोतली जुबान को शब्दों का आगर दिया
मेरी गुस्ताखियां माफ करते रहे,
मेर हर अक्षर को, पैराग्राफ करते रहे
मैं अंश हूं तुम्हारी स्नेहमयी अभिलाषा का,
मैं वंश हूं तुम्हारी काव्यालय की आशा का
मेरी मुस्कुराहटों के तुम्ही तो हेतु हो
मेरी खुशियों की हाटों के तुम्ही तो सेतु हो
तुम ही धरती और तुम्ही हो अम्बर
मेरी हर पगडंडी तुम्हारी अनुगामी है
हर भटकाव पर तुम्ही ने अंगुली थामी है
पितृ ऋण से बडा ऋण हो नहीं सकता
कितना भी चुकाये पुत्र उऋण हो नहीं सकता
आप हैं तो ये खुशबू है, फूल है, चमन है
ईश्वर तुल्य पिता को शत शत नगन है
किशोर पारीक 'किशोर'