एकाकीपन की घड़ियों में, इक दूजे का ध्यान करें
देंखे स्वप्न सलोने सुन्दर, नीड़ बनायें इक अनुपम
मधुर चांदनी में बन जाएँ, इक दूजे के हम शबनम
अंतर्मन के अहसासों का, आओ हम पहचान करे
आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे
आहट की अभिलाषाओं में, कब से खुला हुआ मानद्वारा
गीत मिलन के गाता जाता, ह्रदय बना हुआ बंजारा
दोनों के मन प्राण एक हों, तो राहें आसन करें
मन की दूरी, तन की दूरी, का अंतर अब दूर करें
अंतर्मन के कोरे कागज़ पर, सतरंगी रंग भरें
आओ अपने अधरों से हम, प्रीत रीत का दान करें
आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे
में हूँ सागर तुम सरिता हो, आओ मुझमें मिल जाओ
मेरे जीवन की बगिया मैं, पुष्प सरीखी खिल जाओ
फिर हम गायें प्रेम तराने, अदभुद सा ऐलान करें
आओ प्रियवर स्नेह तलैया में मिल कर स्नान करे
एकाकीपन की घड़ियों में, इक दूजे का ध्यान करें
किशोर पारीक "किशोर"