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बुधवार, दिसंबर 14, 2011

मंहगाई से खाटे हुई खडी है,


सदनों में जि‍न्‍दा लाशे मरी पडी है

लगा तू बहती गंगा में डूबकी

क्‍यों नारे लगाता, यंहा गडबडी है

रोता क्‍यों भूखों के लि‍ये तू प्‍यारे

गोदामों में गेंहू की बोरी सडी है

नगमें सुनाये जा तू प्‍यार के

माता भारती उधर रो पडी है

कि‍शोर पारीक 'कि‍शोर'

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