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शनिवार, मई 15, 2010

लतीफे बज़्म में ना हो, कभी काबिज़ मेरे यारो

परिंदा कह गया हमको, खुदा हाफिज़ मेरे यारो
चमन में चह चहे कायम,रहे हरगिज़ मेरे यारो
हमारा फ़र्ज़ है महफिल में, केवल शायरी होवे
लतीफे बज़्म में ना हो, कभी काबिज़ मेरे यारो

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