किशोर पारीक "किशोर"
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शनिवार, मई 15, 2010
लतीफे बज़्म में ना हो, कभी काबिज़ मेरे यारो
परिंदा कह गया हमको, खुदा हाफिज़ मेरे यारो
चमन में चह चहे कायम,रहे हरगिज़ मेरे यारो
हमारा फ़र्ज़ है महफिल में, केवल शायरी होवे
लतीफे बज़्म में ना हो, कभी काबिज़ मेरे यारो
2 टिप्पणियां:
jogeshwar garg
15/5/10 06:24
बहुत सुन्दर !
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दिलीप
15/5/10 10:39
waah kya baa kahi ...bahut khoob...
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बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंwaah kya baa kahi ...bahut khoob...
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