हे माया
हज़ार हज़ार के नोटों की माला
देख चकराया
तेरे जो रंगरूट है
उन्हें लूटने की छूट है
अमीर का अट्टहास है
गरीब का उपहास है
भावनाओं की ठगाई है
कमर तोड़ महंगाई है
असत्य के दाव है
सत्य पे घाव है
नोट पे गाँधी है
पाप की आंधी है
माला नही नाग है
लोकतंत्र पे दाग है!
में तो तुझे तब मानता
तेरी असलियत पहचानता
जैसे फूलों की माला
अपने गले से उतारती थी
दलित को पहना कर पुचकारती थी
क्यों नहीं किया अबके उनसे प्यार
क्यों नहीं डाला उनके गले में यह हार
हे माया
हज़ार हज़ार के नोटों की माला
देख चकराया
किशोर पारीक " किशोर"
bilkul sahi vyanga...behen ji ki jai ho bhai...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
..behen ji ki jai ho bhai...
जवाब देंहटाएंbahut khub.....
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