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मंगलवार, अप्रैल 13, 2010

हज़ार हज़ार के नोटों की माला


हे माया
हज़ार हज़ार के नोटों की माला
देख चकराया 
तेरे जो रंगरूट है
उन्हें लूटने की छूट है
अमीर का अट्टहास  है
गरीब का उपहास है
भावनाओं  की ठगाई है
कमर तोड़  महंगाई है
असत्य के दाव   है
सत्य पे घाव है
 नोट पे गाँधी  है
पाप की आंधी है
माला नही नाग है
लोकतंत्र पे दाग है!
में तो तुझे तब मानता
तेरी असलियत पहचानता
जैसे फूलों की माला
अपने गले से उतारती थी
दलित को पहना कर  पुचकारती थी
क्यों नहीं किया अबके उनसे प्यार
क्यों नहीं डाला उनके गले में यह हार
हे माया
हज़ार हज़ार के नोटों की माला
देख चकराया
किशोर पारीक " किशोर"

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